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Annapurna Mishra

Abstract

3.6  

Annapurna Mishra

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आंखें

आंखें

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उदासी आंख से है छलक रही

मैं डर से हूं घिरा हुआ

मन कांपता सा है सदा

जाने किन जिम्मेदारियों से हूं बंधा

शायद ये आँखे ही दे बता


भरा है दिल ग़ुबार से

जाने क्या चाहिए इस जीवन से

सब पाकर भी कुछ छुटा सा है

जाने क्या मुझसे रूठा सा है

है आखें भी छुपाती मुझसे

ये आंख भी आज झूठा सा है


सोचता बहुत कुछ पर कुछ कर पाता नहीं

है इन्तज़ार, कब मिलेगी मुझको भी मंजिल नई ?

क्या है डर जो मुझको यूँ सता रही ?

कब कह पाऊंगा मै कि अब सब कुछ है सही ?

है

आखें इसी आस में ही


किस हेतु पाना चाहता हूँ ख्याति ?

क्या है मुझे इस कदर धिक्कारती ?

मेरी आखें मुझसे पूछतीं

क्यूँ ये विपत्तियां मुझे ही ललकारती ?

मुझे हरा फिर मेरे बिखरे उत्साह पर हंसती

वो हंसती, पर मेरी उदासी आंखे रोती


मगर है ये उदासी आखें ही

जो उम्मीदें नहीं छोड़तीं

आज आखें खुशी से टिमटिमा रहीं

मै मस्ती में हूँ झुम रहा


मन मोर सा है नाच रहा

जाने किस धुन में हूँ रमा

है आज आंखों में आसमां

ये मासूम आँखें ही मेरी आत्मा।


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