आंगन मोरा
आंगन मोरा
मेरा आंगन मुझसे कुछ कह रहा है,
पुरानी यादों की सरसराहट से वो गूंज रहा है।
इतने सालों बाद आज बाबुल के घर लौटी हूं,
देख कर सब कुछ मै चुप हो गई हूं,
वही दीवारें है,
वही चौबारे है।
मेरा आंगन मुझसे कुछ कह रहा है,
पुरानी यादों की सरसराहट से वो गूंज रहा है।
किसी कोने में मुझे एक खत मिला,
जो कभी मैंने अपनी मां को था लिखा,
उस खत में मेरी नाराजगी थी,
एक पांच साल की बच्ची की बेहद बुरी लिखावट थी।
मेरा आंगन मुझसे कुछ कह रहा है,
पुरानी यादों की सरसराहट से वो गूंज रहा है।
खत में मैंने ना जाने क्या क्या लिख दिया था,
पूरा खत बचपने और मासूमियत से भरा था,
उसमें कुछ यूं लिखा था,
मुझे अपनी मां जैसा बनना था।
मेरा आंगन मुझसे कुछ कह रहा है,
पुरानी यादों की सरसराहट से वो गूंज रहा है।
फिर आगे मैंने लिखा की मुझे रोज़ लड्डू चाहिए,
एक पूरा दिन मां और बापू जी के साथ चाहिए,
क्यों बाबुल का आंगन पराया हो जाता है,
क्यों अपना ही घर बस बीती यादों का बसेरा बन कर रह जाता है।