जय हिन्द जय हिन्दी
जय हिन्द जय हिन्दी
क्यों मनाऊँ मैं हिन्दी दिवस
हिन्दी रोम-रोम में बसती है,
देश के कण-कण में व्याप्त
इसकी गूंज हरेक दिशा गुँजती है,
जननी की जय गान नित गाती है
अधरों पर इसकी सदा अमृत वाणी रहती है;
मिठास है इसमें इतनी
हरेक दिल की खटास मिटाती है,
सबको एक धागे में बाँधती यह
लेकर साथ सबको कदम बढ़ाती है;
लेकिन फिर भी न जाने क्यों
इसे अपनी अधिकार मिल नहीं रही,
स्वयं को साबित करने हेतु
कई दशक से लड़ती आ रही,
जैसे अपने ही देश में परदेशी
बनकर पराया धन हो किसी की,
क्या इतनी ही है इसकी हस्ती
क्या इसकी अस्तित्व इतनी सस्ती,
नहीं नहीं अब और सहन नहीं होती,
आँखों के सामने यह रहे रोती बिलखती
ऐसा और होने नहीं देंगे
आओ मिलकर आवाज उठाएँ
हिन्दी भारत की शान बन जाए
चमकती हुई एक नई सितारा
पूरी विश्व की माथे की बिंदी
बन जाए,
चारों ओर इसकी जय गान गुंजे
गर्व से कहे हर कोई दिल से
जय हिन्द जय हिन्दी ।
जय हिन्द जय हिन्दी ।।
