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Bikash Baruah

Abstract

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Bikash Baruah

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खुशी

खुशी

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दो वक्त की रोटी नसीब हो,

रहने को एक मकान

चाहे टूटी-फूटी ही सही

गर मुमकिन नसीब हो,


कपड़े चाहे फटे-पुराने,

मैले-कुचैले ही सही पर

इज्ज़त को ढकने लायक़ हो,

जेब में पैसे न सही पर

दिल में प्यार भरपूर हो,


ऊँची ख्वाब न देखें बस

हक़ीक़त में जो जीता हो,

आसमान में न उड़ता जो

पैर हमेशा ज़मीन पर हो,


नाउम्मीदी पास न भटके जिसके

आशा की गीत जो गाता हो,

खुशी उसी के क़दम चुमती और

अक्सर खुशकिस्मत कहलाते वो।।


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