आज की खुदाई
आज की खुदाई
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हर गली चौराहे पर
आज ख़ुदा दिखते हैं,
नज़र जिधर दौड़ाऊं
दैर ओ हरम दिखते हैं ;
खुदाई इस कदर हावी है
इंसानियत खो गई है,
क़ाज़ी हो या बाबाजी सब
शक्ल एक जैसी दिखती है ;
खुदा से दूर जो बैठे हैं बेबस
ज़रा उनसे हाल ए दिल पूछिए,
आग पेट में इस कदर लगी है
उनसे रोटी की कीमत पूछिए;
न छेड़ मुझे और, ऐ मेरी किस्मत
अब सब्र की इम्तिहान और न लें,
सबब बन सकती है आँखों की नमी
इल्तिज़ा है जलजला इसे बनने न दें;
हर गली चौराहे पर
आज ख़ुदा दिखते हैं,
नज़र जिधर दौड़ाऊँ
दैर ओ हरम दिखते हैं ।।
