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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

"रावण की विनती"

"रावण की विनती"

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हुई थी, असत्य के ऊपर सत्य की जीत

दशहरे का पर्व बताता है, यह बात पुनीत

रोशनी ने अंधेरे को दिया बुरी तरह पिट

प्रभु श्री राम ने मार दिया था, रावण नीच


पर रावण पूंछे, हाथ जोड़कर बात विनीत

मैने तो प्रभु एक ही बुरा कर्म किया, अतीत

जिसकी सजा मुझे मिल रही, हर वर्ष नित

जलाये, जा रहे, मेरे पुतले बंधु, बेटे सहित


फिर भी मैंने तो मर्यादा रखी थी, अतीत

अशोका वाटिका रही थी, सीता निर्भीक

लंका में भी सीता उतनी ही थी, पवित्र

जितना था, जी पंचवटी में पवित्र चित्र


पर आजकल के लोग मेरे नही है, मीत

दुष्कर्म करते, किसी से न डरते है, नीच

उन्हें भी दो सजा रघुनाथ, चलाकर तीर

बंद करो प्रभु मेरी आँखों से बहता नीर


अब और नही देखे जाते, दुष्कर्म फिर

लोग गलत करते, उठाकर चलते सिर

उनका भी तो एकबार जला दो, शरीर

जो दुष्कर्म कर, खुद को समझते, वीर


ऐसे नपुंसकों को तो बांधकर, जंजीर

सरेआम जला दो सब मिलकर धर्मवीर

फिर रावण उफ़ न करेगा, तनिक रघुवीर

वर्ष में एक क्या ३६५ दिन जलाओ शरीर


पहले उन्हें, जलाओ जो रावण से बड़े नीच 

फिर रावण पर चलाओ, आप अग्नि तीर।


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