शायरी 1
शायरी 1
ख्वाब दर ख्वाब भटका हूँ जिंदगी तुम्हारे लिए
एक उम्र फ़ना हुआ पल दो पल तो रहने दो
मोहब्बत मे बर्बादी का ये उसूल रहने दो
मुझे महफ़िल मे बुला लो उन्हे तो रहने दो
लूट गया हूँ मगर मेरी तनहाई का क्या कसूर है
ये साजो समान ले जाओ इक कफन तो रहने दो
ले जाएँ जिनके हैं ये मंदिर मस्जिद
सूरज चाँद बाँट लो ये वतन तो रहने दो
बालकनी मे चाय के दो प्याले रखे थे
इतनी देर से आ रहे हो तो रहने दो
मंजूर है हम एक दूसरे के हो न सके
गवाही मे रंजिश की बातें तो रहने दो।