नाउम्मीदी...
नाउम्मीदी...
बस इम्तिहान देना पड़ता है
दर-ब-दर, ऐ इंसान!
कभी बीच राह में यूँ
बेइंतहा भटकते न फिरना, ऐ इंंसान!
जुस्तजू-ए-ज़िन्दगी
बड़ी लाजवाब है...
इसे अपने दम पे
जीना पड़ता है, ऐ इंसान!
क़शमक़श भरी ज़िन्दगी
है यूूँ बेपनाह...
कि दर-ब-दर भटकने को
जी चाहता है,
मगर फिर भी नामालूम
क्यों सहारे की
तलाश करती है ज़िन्दगी...!
बस एक गुुज़ारिश है
कि बेपरवाही में
अपनी ज़िद के आगे
यूँ डूबा न देना
क़श्ती उम्मीदों को...