आखिर क्यों?
आखिर क्यों?


सोचती हूँ मैं कभी कभी,
क्या होते होंगे एलियन ?
हम सब से जुदा,
आकृति रूप में अलग,
या अंतस के गुणों में अलग,
क्या होते है,
कुछ आलौकिक शक्ति सम्पन्न,
वो अजनबी,
जो वासी है कही,किसी सुदूर ग्रह के,
या है हम सब जैसे ही,
उस परमात्मा के अंश,
परमात्मा के गुणों को कर धारण,
आते हैं कभी कभी बताने,
मानव तू ही तो है,
आलौकिक शक्ति सम्पन्न,
एक एलियन,
पर तूने न जानना चाहा,
कभी खुद की आलौकिक ताकत को,
लड़ रहा है एक अंधी दौड़,
क्या पाने?
जो न
कभी तेरा था,
न कभी तेरा है,
न कभी होगा,
खाली हाथ था तब भी,
और आज भी,
धरा पर रहेगा सब धरा ही,
जब प्रस्थान तू करेगा।
पर न जान पाया,
तू खुद की शक्ति,
जो भरती हैं तुझमे अलौकिक शक्ति,
बना देती है तुझे भी एलियन,
आखिर तू भी तो,
धरा का स्थायी वासी तो नही,
आया है विचरने,
जानने खुद की शक्ति।
क्या सोचा कभी,
क्यो न पाया तू,
एक एलियन की शक्ति ?
न कर अंतस यात्रा,
ठुकरा दी तूने,
एक और जिंदगी,
चलने पुनः,
उस जीवन चक्र पर।।