आखिर कब तक
आखिर कब तक
जिम्मेदार लोग अपना कर्तव्य बखूबी जानते हैं
वह कभी बोलते नहीं कर के दिखाते हैं बस
बातूनी लोग सिर्फ करते रहते हैं बड़ी बड़ी बाते
झूठ, फरेब मक्कारी से हमेशा उलझाए रखते हैं
झूठे वादे, खोकले वादे
इंसानियत ना नेक इरादे
ना ही होते उनके कभी
बाल बच्चे, घर परिवार
वो तो होते हैं सदा आत्ममुग्ध
आपदा में भी अवसरवादी
उनके अपने होते न पराये
उन्हें क्या फर्क पड़ता कोई जिए मरे
चंद सिक्को के, कुर्सी के खातिर
इमांन बेचनेवालों गद्दारो
याद रखना भगवान के घर देर हैं
अंधेर नहीं सुधर जावो, देश बचावो
कीड़े मकोड़े की तरह लोग मर रहे हैं
गांव, शहर तबाह हो रहे हैं कसम से
गर नहीं बचेंगे वो बेचारे तो क्या करोगे ?
आखिर कब तक उन्हें बलि का बकरा बनवावोगे ?