आखिर कब तक
आखिर कब तक
कैसी पढ़ाई कैसी शिक्षा
औरत दे रही अग्नि परीक्षा
कब तक यूं ही घुटती रहेगी
अपने जख्मों के समेटे
आह भरे न कर्राहट
चुपके चुपके चलती जाए
न कोई शोर न कोई आहट
बीत गए बरसों यूं ही
न आंख लगे न जीना आता
सोच बस यही रहती मन में
इससे अच्छा तो मांग लेती दीक्षा-भीक्षा
आखिर क्यों देनी पड़ती है
औरत को ही अग्नि परीक्षा।