अंधी आस्था
अंधी आस्था
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ये कैसा विश्वास
ज़माने का
जीते जी न खाना पानी
दुनिया की आस्था अंधी
मरने पर अनेक व्यंजन
रायता पूरी खीर की हंडी
शायद चुपके चुपके
आता होगा मरने वाला
स्वाद लगाकर नए व्यंजन
खाता होगा मरने वाला
वाह रे वाह इंसान
सोच तेरी का मोल न कोई
दुःखी बेचारा तो यही चाहेगा
बच के चलने से ग़लती
करना अच्छा
तिल तिल के मरने से
एक ही बार मरना अच्छा
ये कैसा विश्वास जमाने का।।