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Sujata Khichi

Tragedy

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Sujata Khichi

Tragedy

आजादी

आजादी

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जिसे हम आजादी समझते हैं

वो खुले पिजरे हैं गुलामी के

ये माना कि सांस आती जाती है

किन्तु हर तरफ अंधेरा फैला है

चुराए जाते हैं यहां पलको से सपने

कैसा वक्त है और कैसे पहरे हैं

जिधर देखो उधर दुख दर्द हैं

हर एक आंसू पलको पर ठहरे हैं 

क्यों रो रहा है अंदर ही फूट फूट कर

जी रहा है घुट घुट कर। 



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