आज फिर
आज फिर
आज फिर अचानक
और मेरे खयाल से अनायास
युद्ध के नगाड़ों की
आवाज बुलन्द हो रही है।
आज फिर तुम्हारी पायल की
झंकार में
एक नया राग उभरा है।
युद्ध है
तो दो पक्ष होंगें
बनाने वालों ने बना भी दिया है
एक राजनीति के दो पक्ष।
पकड़ा दिया है
दोनों को तर्कोंं का हथियार।
युद्ध तेज होने के आसार हैं
जो चल रहा है
उससे भी भयावह।
दोनो पक्ष आत्मघात के लिये आमादा है
और उन्हें लग रहा है
वे अपने अस्तित्व के लिये लड़ रहे हैं।
राजनीति, संविधान, जनहित
विकास,आतंक
जाने कितने तर्क हैं
हमारे हित में हमें लड़ाने वालों के पास,
हमारा अस्तित्व निचोड़ लेने
के निमित्त ।