आज कविता
आज कविता
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कभी कविता
गुलाब बोया करती थी,
गुलाब उगाया करती थी,
कविता में था समय का स्पंदन
गेंहू, धान बो कर भी
हो जाती रही समृद्ध वह ,
साँसों में उसकी
गुलाब-जूही की चमक,
फसलों की सोंधी महक,
रहती थी कभी
कविता की बातों में
सीधी-सरल लकीरें
औ आदमियत की सुगंध
रहा करती थी।
आज कविता
सरल सहज नहीं
उसने अपने रंग, चलन, ढब
बदल लिये
न जाने कब से
उसकी बातों में
सरोकारों में
बंदूक, गोली, बारुद की
धमक भर गई।
याने आज कविता
आज भी कविता
अपने समय का सच बताती है,
आज वह कलम से नहीं
बंदूक की निकली
गोली से लिखी जाती है
और हमें कितना अधिक डराती है।