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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Abstract Fantasy

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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Abstract Fantasy

"वक़्त नहीं मिलता"

"वक़्त नहीं मिलता"

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वक़्त नहीं मिलता,

की लिखूं कोई कविता

मेरे सपनों के लिए।

शब्द सारे डूब जाते हैं


एहसास के सागर में,

ढूंढने के लिए

अर्थ के मोती।

फ़िर रंग जाते हैं

कल्पनाओं के इन्द्रधनु में,

और आकर 

बस जाते हैं 


मेरी ऑंखों की सीप में।

और फ़िर

झरते रहते हैं

सारे सपने,

जब जब जीवन 

मौसम बदलता है।

और फ़िर

ढलती रहती हूं

में, बदलते मौसम और 

वक़्त के साथ।


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