शोख अदाऐं
शोख अदाऐं
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शोख अदाओं के खंजर से कैसे दिल को संभाला है
न जाने क्या सोचकर इश्क का रोग दिल ने पाला है
जबसे चखा है इन तीखे नयनों का खारा सा नमक
तेरी कसम गले से उतरता नहीं कोई भी निवाला है
न जाने कब तू मेरे ख्वाबों में आ जाये, यही सोचकर
घर की हर खिड़की और दरवाजा मैंने खोल डाला है
तन्हाइयों को बांहों में समेटे सोने की कोशिश करते हैं
दुश्मन नींद ने भी आज न जाने कब का बैर निकाला है
लचकते बदन की महक ने जिंदा रखा है अब तक "हरि"
वरना तो इस बेदर्द जमाने ने कब का हमें मार डाला है।