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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

शोख अदाऐं

शोख अदाऐं

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शोख अदाओं के खंजर से कैसे दिल को संभाला है 

न जाने क्या सोचकर इश्क का रोग दिल ने पाला है 


जबसे चखा है इन तीखे नयनों का खारा सा नमक 

तेरी कसम गले से उतरता नहीं कोई भी निवाला है 


न जाने कब तू मेरे ख्वाबों में आ जाये, यही सोचकर

घर की हर खिड़की और दरवाजा मैंने खोल डाला है


तन्हाइयों को बांहों में समेटे सोने की कोशिश करते हैं

दुश्मन नींद ने भी आज न जाने कब का बैर निकाला है 


लचकते बदन की महक ने जिंदा रखा है अब तक "हरि"

वरना तो इस बेदर्द जमाने ने कब का हमें मार डाला है।


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