स्नेह
स्नेह
स्नेह की गंगा में
लगाती डुबकी
वह नन्हींं ललहुन चिड़िया
जिसके अभी पर भी
निकले नहीं।
घोंसले से झाँकती
अपने बच्चों को
देखती, गुनती, समझती
एक माता चिड़िया
करती है इंतज़ार,
कब उन बच्चों के
निकलेंगे पर और
कब वे उड़कर नापेंगे
आकाश की ऊँचाई
बस! उसी तरह
एक माँ करती रहती
लगातार इंतज़ार,
कब उस पर से
आकाश की छाती नापने
उड़ेंगे उसके भी बच्चे
लेकिन कभी-कभी
कहाँ हो पाता है
मनचाहा सब कुछ
चिड़िया के बच्चों की तरह
पर निकलते ही
फुर्र -फुर्र से
उड़ जाते हैं बच्चे
कभी नहीं लौटने के लिए
माता का प्रेम उस वक्त
हो जाता है घायल
फिर भी तो वह
रहती है भरी
खूब-खूब स्नेह-प्यार से।
