कश्मीर के लिए
कश्मीर के लिए
स्वर्ग में कब का
घुल चुका है
बारूदी गंध विषैला,
विषैले जीवाणुओं ने
हर ओर से लिया है घेर
विध्वंस के काले डैनों ने
छाप लिया है उसे
उसके क्षितिज का रंग
अलग हो चुका है
नीलाभ, पीताभ
गुलाबी नहीं रहा,
ललहुन गगन में
घुल गया है बारूदी
भूरा-काला, उजला रंग
जैसे घुलते हैं पानी में
काले कचड़े, माटी का भूरापन
सफेद रसायन फैक्टरी का
और हम बचा नहीं पाए
दुनिया भर के जल के
स्वच्छ नीलेपन को
लेकिन हमें है विश्वास
एक दिन हम इस विध्वंस के पार
उठ खड़े होंगे फिनिक्स की तरह
अपनी कश्मीरियत के रक्षार्थ
पूरी मासूमियत के साथ
बचा लेंगे स्वर्ग की मासूमियत को,
विध्वंस हमारे इरादों का
बाल भी बाँका नहीं कर सकेगा।
