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शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

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शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

आज की नारी

आज की नारी

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कभी - नारी होती थी

पूज्यनीय-बचपन से बुढ़ापा तक

किन्तु - आज की-नारी- है लाचार

रोज़ पढ़ो और सुनो -नारी-उठती

बीच बाजार- और होती इज़्ज़त तार तार

कहीं पर फेंकते-तेज़ाब- मुँह पर

तो- कहीं पर करते सीमा पार

फिर देते हैं उसको मार

छिपाने को अपना गुनाह

कहीं-कहीं पर होती हैं-वह

घरेलू हिंसा की शिकार

वह भी अपने परिजन बीच

-और-

चढ़ती बलि-वेदी पर वह

कारण होता-दहेज व्यापार

कहीं नहीं है आज सुरक्षित

आज की भोली भाली नारी

अपनों ने अपनों को मारा

फिर भी होती है-नारी-बदनाम




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