आदत
आदत
इक आदत सा निभा गया वो,
जब हँसा, तो याद आ गया वो।
वक़्त करता रहा तब्दील हमें,
ज़ात वही पुरानी दिखा गया वो।
जब भी टूट कर बिखरने लगा,
गले मिल सीने से लगा गया वो।
फासले भी ना आ सके दरम्यां,
दिल को छू मुझे हिला गया वो।
छेड़ कर ज़िक़्रे-रवानी-ए-वक़्त,
जाने क्यों फिर यूँ रुला गया वो।
कमज़ोर हौसलों से घबराया था,
पेशानी चूम, सर सहला गया वो।
मुहब्बतें भी अजीब रही हमारी,
'दक्ष' को सुख़नवर बना गया वो।