STORYMIRROR

Vikas Sharma Daksh

Romance

4  

Vikas Sharma Daksh

Romance

आदत

आदत

1 min
182

इक आदत सा निभा गया वो,

जब हँसा, तो याद आ गया वो।


वक़्त करता रहा तब्दील हमें,

ज़ात वही पुरानी दिखा गया वो।


जब भी टूट कर बिखरने लगा,

गले मिल सीने से लगा गया वो।


फासले भी ना आ सके दरम्यां,

दिल को छू मुझे हिला गया वो।


छेड़ कर ज़िक़्रे-रवानी-ए-वक़्त,

जाने क्यों फिर यूँ रुला गया वो।


कमज़ोर हौसलों से घबराया था,

पेशानी चूम, सर सहला गया वो।


मुहब्बतें भी अजीब रही हमारी,

'दक्ष' को सुख़नवर बना गया वो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance