आदमी आदमी से डरता है
आदमी आदमी से डरता है
आदमी आदमी से डरता है
कर्मों का नहीं
खौफ किसी को
आदमी आदमी से डरता है।
दर बदर भटकते
फकीर को देख
न जाने क्यों
मेरा दिल तड़पता है।
मशीन की तरह
दौड़ता दिन-रात
आदमी
तिल-तिल कर मरता है।
ऐ खुदा
तुझे पाने की जुस्तजू में
मेरा दिल
न जाने क्यों
बच्चों के मानिंद मचलता है।
बहुत हुआ अब खेल
लुका-छिपी का
"निशा"तुझे आजमाने का
दिल करता है।

