आधा इंसान
आधा इंसान
भरा नहीं जो भावों से
ना दिल में जिसके प्यार है
छल प्रपंच नित बेच रहा
जो धूर्त और मक्कार है
"मतलब" जिसका धर्म है
"बेइमानी" है जिसकी जाति
"लंपटता" के कुल में जन्मा
"आधा इंसान" है उसकी प्रजाति।
कब नीयत बदल जाये
कब किस पे फिसल जाये
कब जानवर बन जाये
कब इंसानियत मर जाये
रिश्ते नाते जिसे ना भाते
खोटे काम ही करने आते
इंसानियत को जो हैं लजाते
वे ही "आधा इंसान" कहाते
जमीर जिसका मर चुका
जाने कितने पाप कर चुका
दिल में पत्थर भर चुका
संवेदनहीन, मशीन बन चुका
देश से जो करे गद्दारी
हैवानों से जिसकी यारी
खूनी होली जिसको प्यारी
आधे इंसानों की सेना सारी ।
श्री हरि