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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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सत्य अन्वेषी ब्योमकेश बक्शी

सत्य अन्वेषी ब्योमकेश बक्शी

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"भाई साहब , आपने क्या बहुत ज्यादा जासूसी उपन्यास पढ़ रखे हैं क्योंकि कई बार मैं देखता और महसूस करता हूं कि आप हर चीज को शक की निगाह से देखते हैं। आपका यह शक्क और खोजी स्वभाव मुझे यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि आपके चरित्र पर एक जासूस की छाप है।"-छोटे भाई के समान मेरे मित्र गौरव ने मुझसे थोड़ा सकुचाते हुए कहा।


 गौरव मुझे अपने बड़े भाई की तरह ही पूरा सम्मान देते हैं इसलिए वह बात जो उनके अपने अनुमान के अनुसार मुझे अप्रिय लग सकती है। ऐसी बात कहने में वह हमेशा ही एक हिचकिचाहट का अनुभव करते हैं। वैसे मैंने उन्हें यह कह रखा है कि संकोच तो किसी के बीच में भी नहीं रहना चाहिए। आपसी संवाद पारस्परिक संबंधों की निर्मलता और ताजगी के लिए परम आवश्यक है।संवाद हीनता की स्थिति में संकोच के कारण उपजी मन में कुछ भावनाएं बीज रूप में पड़ी रहती हैं और बीतते समय के साथ यह बीज अंकुरित होकर एक बड़े वृक्ष का भी रूप ले सकता है जो संबंधों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।यह विचार व्यक्त करते हुए मैंने उनसे मन में आने वाली प्रत्येक जिज्ञासा या भावना को मेरे सामने रखने का आग्रह किया है और कहा है कि आप संकोच कभी न करें क्योंकि आप तो हमारे भाई और मित्र दोनों ही हैं।


मैंने गौरव से कहा -"भाई गौरव 'मैंने 1968 में आई फिल्म 'आंखें' फिल्म देखी थी जिसमें धर्मेंद्र ने  एक जासूस की भूमिका निभाई थी।माला सिन्हा इस फिल्म की हीरोइन थी और इस फिल्म में महमूद ने कॉमेडियन की भूमिका निभाई थी। उस फिल्म का एक डायलॉग है कि जासूसी का सबसे पहला नियम यह है कि आंखें बंद करके कभी भी किसी पर विश्वास न करो। इसी से मिलता-जुलता एक और भी नियम है 'रेस्पेक्ट ऑल सस्पेक्ट आल' क्योंकि यह दुनिया बड़ी ही विचित्र है।अगर हम लोगों पर भरोसा नहीं करते तो भी काम नहीं चलता और जब जरूरत से ज्यादा भरोसा करने लगते हैं तो अक्सर धोखे मिलते हैं तो हमेशा ही इस पंक्ति को भी हमेशा ही याद रखना चाहिए 'इस कदर हमने खाए हैं धोखे 'अब किसी पर भरोसा नहीं है'। यह बात तो तुमने सच ही कही है कि मैंने अपनी युवावस्था में काफी जासूसी उपन्यास पढ़े हैं। आज भी अगर मुझे कई उपन्यासों में से चयन का अवसर मिले तो मैं जासूसी उपन्यास पढ़ना पसंद करूंगा।देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति , काजर की कोठरी ,नरेंद्र -मोहिनी ,कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर, भूतनाथ आदि के साथ उनका पूरा समग्र भी मैंने रातों में जाग- जाग कर पढ़ा है। उनकी तिलिस्मी और उनके अय्यारों की अय्यारी से युक्त यह कहानियां इतनी ज्यादा दिलचस्प थी कि बहुत से गैर हिंदीभाषी उपन्यास प्रेमियों ने इनका आनंद लेने के लिए हिंदी सीखी और तब इन्हें पढ़ा।"


गौरव हंसते हुए बोले-" भाई साहब, बाबू देवकीनंदन खत्री तो एक पुराने लेखक थे जिनका जन्म 18 जून 1961 को हुआ था और उन्होंने 1 अगस्त 1913 को इस दुनिया को अलविदा भी कह दिया था।यह तो पुराने लेखकों की बात हो गई।अगर नए लेखकों की बात की जाए तो उनमें से किस लेखक के उपन्यास या कहानी  का कौन सा किरदार आप को आकर्षित करता है।"


मैंने कहा-"मेरे भाई, मेरे मित्र, मेरे गौरव; वैसे तो सभी प्रकार की जासूसी कहानियां और उपन्यास पढ़ना मुझे अच्छा लगता है।कोई भी जासूसी फिल्म या जासूसी धारावाहिक देखना मुझे दूसरे की दूसरी अन्य तरह की फिल्मों या धारावाहिकों से ज्यादा रुचिकर लगती हैं लेकिन अगर इस समय की बात कही जाए  तो शरदिंदु बंधोपाध्याय की लेखनी से उपजा भारतीय बंगाली काल्पनिक जासूस ब्योमकेश बक्शी मुझे बहुत पसंद है।अभी लॉकडाउन के दौरान ब्योमकेश बक्शी डी डी नेशनल चैनल पर फिर से टेलीकास्ट हुआ था। लॉकडाउन में मेरे पास भरपूर समय था कि मैं इसे देख सकूं। मैंने इसके लिए मोबाइल में पांच मिनट पहले का अलार्म लगा रखा था यदि अलार्म बजने के समय मैं अगर स्नान भी करने जा रहा होता था तो स्नान करने का कार्यक्रम उस समय स्थगित कर देता था। फिर तो मैं इस धारावाहिक इस कड़ी को देखने के बाद ही स्नान करता था। ऐसा माना जाता है कि ब्योमकेश बक्शी से संबंधित 32 कहानियां 1932 से 1970 के बीच में लिखी गईं जो प्रसिद्ध जासूसी चरित्र शेरलॉक होम्स से प्रेरित हैं।रजित कपूर ने ब्योमकेश बक्शी की जबकि उनके सहायक अजीत बनर्जी की भूमिका के के रैना ने निभाई थी। इसमें ब्योमकेश बक्शी स्वयं को जासूस नहीं बल्कि 'सत्य अन्वेषी' कहते हैं और सचिन जी हर कहानी के अंत में वह सत्य का अन्वेषण करते हैं और एक सीधे-साधे लेकिन बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति की तरह सत्य की खोज कर अपराधी का पता लगाते हैं जबकि देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों में अय्यार युद्ध कला और भेष बदलने की कला में बहुत ही निपुण दिखाए गए हैं उनके भेष बदलने की कला इतनी ज्यादा वास्तविक होती है कि उपन्यास को पढ़ते समय कई बार हम जो पढ़ रहे होते हैं ।वह थोड़ी देर बाद गलत साबित होता है। पता चलता है कि जिस पात्र के साथ उपन्यास की दुनिया में हम पढ़ते-पढ़ते भ्रमण कर रहे होते हैं बाद में पता लगता है कि यह तो वास्तविकता थी नहीं बल्कि कोई अय्यार उनका वेश धारण करके इस दृश्य में उपस्थित था। यही विशेषता उस कहानी को लगातार पढ़ने के लिए मन को बांधे रखती है। ब्योमकेश बक्शी धारावाहिक देखते समय स्वयं ब्योकेशकी भूमिका निभाने वाले रजित कपूर एक सामान्य से व्यक्ति लगते हैं।उनका सीधा-साधा व्यक्तित्व ही मेरे आकर्षण का मुख्य कारण है।"


गौरव ने ऐसे किस्से कहानियां पढ़ने में होने वाले लाभ के बारे में पूछा -"इस प्रकार की जासूसी कहानियां और उपन्यास क्या हमारे अपने और हमारी भावी पीढ़ी के लिए कुछ लाभप्रद सिद्ध हो सकते हैं ।इसके बारे में आपका क्या बताना चाहेंगे।


"भाई, मेरा मन का मेरा अपना व्यक्तिगत विचार है। दूसरे व्यक्ति का विचार इससे अलग भी हो सकता है अगर मुझे अपने विचार रखने की बात कही जाएगी तो मैं यही कहूंगा कि इससे बुद्धि का अधिक इस्तेमाल होने से व्यक्ति की बौद्धिक तार्किक क्षमता बढ़ती है। किसी के द्वारा हर किसी घटना को एक अलग दृष्टिकोण से देखना हमारी तर्क करने की क्षमता में प्रभावी वृद्धि करता है। इस तरह की बातें जो एक सामान्य व्यक्ति के नजरिए से नहीं बल्कि एक विशेष दृष्टिकोण से देखने की कला ही तो तर्क शास्त्र का उपयोग करते हुए समस्या का समाधान प्रस्तुत करती है।इस तरह के कार्य बालपन पर अपनी अमिट छाप छोड़ देते हैं। वही समाज पर कथित तौर पर कुछ भ्रांतियां छोटे- छोटे बच्चों विकसित होने का पूरा अवसर नहीं देती। ऐसे में साहित्य लेखकों का कर्तव्य है कि आम व्यक्त की आवश्यकता के अनुसार समाज की उत्तरोतर प्रगति हेतु उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करें जो समाज को सकारात्मक और सहयोग पूर्ण भरे वातावरण में एक सबके साथ मिलजुल कर रहने का संदेश देता हो। छोटे बच्चों को उनकी आयु के अनुसार छोटी-छोटी कहानियां दी जाएं और बड़े लोगों के लिए भी उनकी पाठन रुचि को बरकरार बनाए रखने के लिए ऐसा साहित्य सृजित किया जाए जो समाज के हर स्तर में आमूल-चूल परिवर्तन कर सकें।


"आपके विचार जब मुझे प्रभावित कर सकते हैं तो इस प्रकार का साहित्य बाल, युवा और हर आयु वर्ग के लोगों पर अपना प्रभाव अवश्य दिखाएगा। बच्चों में पढ़ने की रुचि बाल्यकाल से ही विकसित की जानी चाहिए। इस बारे में परिवार की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। छोटे बच्चों को कुछ कहानियां मौखिक रूप से सुनाई जाएं। उसके बाद उन्हें चित्रकथा रूप में लिखित साहित्य उपलब्ध कराया जाए जो उनके सर्वांगीण विकास में काफी सहायक सिद्ध होगा। और आज के युवा में पढ़ने की जो प्रवृत्ति शिथिल होती जा रही है उसे नई गति और नई दिशा मिलेगी। आपके आज के मार्गदर्शन के लिए कोट कोट आभार।"-गौरव ने हाथ जोड़कर कहा।


मैंने भी, "स्वागत है।"- कहते हुए उन्हें विदा किया।


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