समझ के देखो
समझ के देखो
मंदिरों को खूब सजाया गया है। चारों और महाशिवरात्रि की धूम मची हुई है, मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है, भीड़ इतनी है कि मंदिरों में पैर रखने की जगह भी नहीं है। मंदिरों की चारों और बड़े-बड़े होल्डिंग्स लगे हुए हैं, इसमें महाशिवरात्रि के महात्म्य और शाम को सत्संग की बात कही गई है। एक परिवार महादेव में बड़ी आस्था रखता है सत्संग की बात पढ़ कर उन्होंने सत्संग में जाने का मन बनाया।
इस परिवार में हाल ही में एक शादी हुई थी तो उन्होंने उस नए जोड़े को सत्संग में आने पर जोर दिया। नीतीश(पति) भगवान मे रूचि नही रखता था, इधर हेमा(पत्नी) भगवान में आस्था नहीं रखती थी लेकिन परिवार के जोर देने पर दोनों मान गए। पूरे परिवार ने उपवास रखा। उपवास रखने पर पूरे परिवार में से किसी को भी दिक्कत नहीं थी। रात को सब लोग को फलाहार करके मंदिर की ओर निकले। सब ने मंदिर में दर्शन किए और सत्संग में जाकर बैठ गए। सबको पता था आज रात के दो-ढाई बज जाएंगे या सुबह हो जाएंगी। सत्संग शुरू हो गए शुरू होते ही भजन गाए जाने लगे। थोड़ी देर तो सबको चला लेकिन जैसे-जैसे समय बीतने लगा उन लोगों को बोर होने लगा, ठीक से एक घंटा भी नहीं बीता होगा वह सब लोग उब लगे, जैसे तैसे करके बने रहने की कोशिश करने लगे लेकिन नाकाम हो रहे थे। बाजू में बैठे लोग क्या सोचेंगे यह सोच कर चला रहे थे या कहे काट रहे थे। इसमें हेमा की आंख लग गई इस बात पर नीतीश की नजर पड़ी सब लोग क्या कहेंगे यह सोच कर उसको जगाने की सोची लेकिन सबसे छुपाते हुए उसने उसको जगाया और पीछे ले गया। और उसके साथ वहीं बैठ गया।
थोड़ी देर बाद एक वृद्ध जोडा आया और उनके पास आकर बैठ गया। दोनों का आपस में बड़ा प्यार दिख रहा था। तभी उस वृध्दा(वृद्ध ओरत) ने कहा, "कहा था जल्दी आने को लेकिन तुम्हें तो बच्चों की सोने की पड़ी थी। नहीं सुलाओगे तो क्या नहीं सोएंगे"
"रोज तो भजन सुनती हो आज एकाद कम सुन लिया तो क्या फर्क पड़ेगा और हमारी पहली शिवरात्रि भी नहीं है जो कुछ छूट जाएगा अगर उम्र बढ़ गई है और भूल गई हो तो क्या मैं तुम्हें शिवरात्रि की कथा सुनाऊं मुझे अच्छे से याद है" वृध्दा ने नीतीश और हेमा से पूछा "क्या तुम सुनोगे?" हेमा तो वैसे ही बोर हो रही थी सोचा इस बहाने थोड़ा मनोरंजन हो जाए तो उसने फट से 'हां' बोल दिया।
वृद्ध कहीं कुछ लाने को चला गया वृध्दा ने उन दोनों से कहा वह कहानियां बड़ी अच्छी सुनाती है। हमारे बेटे के बच्चों को और आसपास के सभी बच्चों को बहुत अच्छी अच्छी कहानियां सुनाते हैं। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन ठीक ठाक पढ़ लेते हैं। इतने में वृध्द एक किताब लेकर आया उनके पास बैठ गया।
यह किताब और किसी के बारे में नहीं महादेव और पार्वती के बारे में तो क्या मैं शुरू करूं। हेमा ने कहा "हां हां क्यों नहीं" जैसे की हम सब जानते हैं कि महाशिवरात्रि का पर्व महादेव और पार्वती के नाम से मनाया जाता है। उनके बारे में बताने जैसा कुछ ज्यादा नहीं है सब लोग सब जानते हैं। फिर भी मैं तुम्हें वह बताने की कोशिश करूंगा जो मेरी समझ में आया।
जैसा कि हम सब जानते हैं महादेव और माता पार्वती को एक आदर्श युगल के रूप में जाना जाता है। आज की भाषा में कहें तो 'best couple' तो आओ जानते उन्हें ऐसा क्या था, जिससे उन्हें एक आदर्श जोड़ा माना जाता है।
चलो आओ शुरू करते हैं। जैसे कि हम सब जानते हैं। माता पार्वती हिमालय की पुत्री थी उनकी जिंदगी में किसी बात की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी उन्होंने महादेव को पाने के लिए तपस्या की यह बात समझाती है कि एक योग्य गृहिणी बनने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। यह उससे दिखता है कि महादेव को वह अपने लिए योग्य वर मानती थी और उनके लिए उन्होंने तपस्या की।
इसके बाद का प्रसंग आता है जब महादेव ध्यानमग्न थे, कामदेव ने उन की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी और उन्होंने उन को भस्म कर दिया था। इससे यह समझने मिलता है कि चाहे स्त्री हो या पुरुष चरित्र(charater) का अच्छा होना चाहिए। यह नहीं कि एक गया और एक आया, या फिर कोई एक हो और दूसरा पसंद करने लगा। तुम्हें सदा एक के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।
इसके बाद का प्रसंग आता है उनके विवाह का वह जब अपनी जान को लेकर विवाह के लिए निकले थे तब उनके साथ उनके गण और न जाने कितने बड़े बड़े देव यहां तक की असुर और राक्षस भी थे। यह बात दर्शाता है कि भले ही आपके पास धन की कमी हो भौतिक सुख सुविधा की कमी हो लेकिन समाज में मान की कमी ना होनी चाहिए और साथ में सबके प्रिय होनी चाहिए।
इसके बाद पार्वती के मां मैनावती का जो महादेव को देखकर मूर्छित हो जाती है। इसके बाद महादेव सज धज के विवाह करते हैं। चाहे हमें कुछ पसंद ना हो फिर भी दूसरों की खुशी के लिए कुछ काम कर लेना चाहिए। अपनी पसंद का करने की खातिर रिश्ते बिगड़ने नहीं चाहिए। इसके साथ रात्रि खत्म हो गई और सब अपने घर चले गए उससे पहले भावपूर्ण आरती की साथी ही में माना कि चाहे भगवान को ना मानो फिर भी उनकी सीख एक बार सुन लेनी चाहिए।
