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कठपुतलियाँ

कठपुतलियाँ

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सत्ता पाने के लोभ में वह खाली निठल्ले अज्ञानी मतलब परस्त लोगों की भीड़ को आकर्षक व्यक्तित्व के साथ दमदार आवाज़ में सुशासन देने का लोभ दे वर्तमान सत्ता के ख़िलाफ़ भड़का रहा था और भीड़ बिना अपने दिमाग का प्रयोग किये बेक़ाबू हो कर अपने ही द्वारा देश को दिये योगदान से निर्मित संसाधनों में आगजनी व तोड़ फोड़ कर राष्ट्र की सम्पत्ति का नुकसान किये जा रही थी।

भड़काऊ राष्ट्र विरोधी बातें कर अपने मंसूबों में कामयाब होने के बाद धीरे से अपने साथियों से “यह दुनिया रैन बसेरा है। ग़म आता और जाता है। हम वही करते है जो ऊपर वाला कराता है।” यह कहकर खुद को सही ठहराते हुये भीड़ को कठपुतली की तरह नचा वह तो पर्दे के पीछे से धीरे से ग़ायब हो गया।वो अपने ही देशवासियों के ख़ून पसीने से बनी राष्ट्रीय सम्पत्ति को राष्ट्र के सुरक्षा बलों द्वारा संज्ञान लेने तक बर्बाद करतीं रही।

वैमनस्य व दुष्चिन्ता की डोर से बंधी वो कठपुतलियाँ यह भूल ही गयीं थीं कि राष्ट्रीय सम्पत्ति के नुकसान से उनका भी अहित होगा। अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बाद घायल भीड़ को जब होश आया तो पाया कि उनको कठपुतली की तरह नचाने वाला तो उनकी दुनिया उजाड़ दूर महफ़ूज़ हो अब किसी और जगह अपनी दाल लगाने की फ़िराक़ में है।



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