नीला रंग (प्यारा )
नीला रंग (प्यारा )
ऐ हीरो सुन !! नज़र झुकाये किधर ? मनीष का स्वागत लड़कों के ग्रुप ने बड़ी ज़ोरदारी से किया।
वो मैं … केमिस्ट्री लैब में जा रहा था,मनीष हकलाया।
ओहो वैज्ञानिक बनेगें सर जी, बढ़िया …, आइये महान वैज्ञानिक को केमिस्ट्री लैब तक छोड़ आते हैं। ……एक ज़ोरदार ठहाका लगा।
नहीं भैया, मैं चला जाऊँगा।जरा सा सिर उठाकर मनीष ने जवाब दिया।
भैया कैसे हो गये हम तेरे ? एक लड़के ने मनीष का कॉलर पकड़ कर हिलाया।
जी आप सीनियर हैं, इसलिये।
अबे बाप हैं तेरे, क्या हैं ? बता जल्दी।बाप, हम सभी, समझा।
क्या कर रहे हो यह तुम लोग ? एक शहद सी आवाज़ आयी।
कुछ भी नहीं मानसी जी, परिचय प्राप्त कर रहे थे।
परिचय या रैग़िंग ? एक बात समझ लो सब, मेरे रहते कोई रैगिंग नहीं होगी। पता है न ? एंटीरेगिंग सेल की सेक्रेटेरी हूँ मैं ? एक शिकायत में कॉलेज से बाहर हो जाओगे।
अरे हम लोग सिर्फ़ जान/ पहचान कर रहे थे। सब लोग धीरे से खिसक गये।
क्या नाम है तुम्हारा ?
जी दीदी, मनीष।
दीदी ? अरे मेरा मानसी है।
जी।
कहाँ रहते हो ?
गुन्नु घाट में, जो आड़ती है, अग्रवाल जी उन्ही के घर में किराये पर रहता हूँ।
कब से ? वही परमेश्वर अग्रवाल ना।
हाँ, हाँ वही।आज ही गाँव से आया हूँ।
अच्छा वो अंकल तुम्हारे पापा थे, जो हफ़्ते भर पहले किराये की बात करके गये थे ?
नहीं वो मेरे मामा जी हैं, मेरे पिता जी अब नहीं है।
अरे !
आप अग्रवाल जी को कैसे जानती हैं ?
“मेरे रिश्तेदार हैं,” मानसी धीरे से मुस्कुराई।
नीले सूट में मुस्कुराती मानसी मनीष को परी सी लगी, वो उसको देखता रह गया।
मानसी को भी मनीष में एक अज़ब सा भोलापन दिखा। सच्चा चेहरा।
अच्छा, अब तुम जाओ लैब शुरू होने वाली है तुम्हारी, कोई भी दिक़्क़त हो मुझे बताना।
जी मानसी जी।
मनीष को बहुत अच्छा लग रहा था, वो मानो उड़ता हुआ लैब पहुँचा। किशोरावस्था के रंगीन सपने देखते हुये केमिस्ट्री लैब चलती रही।
मनीष का लैब पार्ट्नर रुपिंदर छोटे क़द का हँसमुख स्वभाव का सरदार था। बात / बात पर चुटकुले सुनाता रहता।
एक बात सुन ले मनीष प्रा …लड़की / ट्रेन / बस के पीछे कभी मत भागना। एक जाती है, दूसरी आती है। और जाने क्या / क्या। रुपिंदर बोले जा रहा था। और मनीष मानसी के सपने देखे जा रहा था।कितना मीठा बोलती है, आत्मविश्वास तो कूट / कूट कर भरा है। मनीष धीरे से मुस्कुराया, एक मीठी सी मुस्कुराहट।
ओह भई, बहुत मुस्कुरा रहा है। किसको याद कर रहा है ? रुपिंदर ने उसे छेड़ा।
कुछ नहीं, माँ की याद आ गयी।
बेटा। यह माँ की याद वाली मुस्कुराहट नहीं है।बता ना किसको याद कर रहा था ?
या कोई आते / आते कॉलेज में पसंद आ गयी है ?
“पागल है तू ”मनीष बोला।
कॉलेज छूटने पर मनीष माँ को याद करते हुये मॉल रोड से घर की तरफ़ चल दिया।
घर की घण्टी बजाकर इंतज़ार करने लगा।
दरवाज़ा खुला … सामने मानसी खड़ी थी।
आप यहाँ ?
“ इतनी देर में आये,आवारागर्दी शुरू कर दी ” ऐसे तो हो चुकी तुम्हारी स्टडीज़।मानसी ने आँखो / आँखों में उसको डाँटा।और सुनो परमेश्वर अग्रवाल मेरे पापा हैं। अब तुम घर और कॉलेज दोनो जगह मेरी नज़र में रहोगे।
मुझे तो मानो मनचाही मुराद मिल गयी थी। मनीष ने अपनी पत्नी कविता को बताया।बाक़ी तुम सब जानती हो, मैं किश्तों में सारी कहानी तुम्हें बता चुका हूँ।
अच्छा तो इसलिए तुम्हारा मनपसंद रंग नीला है ? कविता ने शरारत से पूछा।
“नहीं ! नीले रंग में तुम परी जैसी लगती हो, इसलिये ” मनीष ने प्यार से कविता को देखते हुये कहा।