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धर्म

धर्म

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मेरी नजर में धर्म ये नहीं कि हम भगवान के रुप में विष्णु को पूजे , धर्म का मतलब ये नहीं कि हम ईशु को पूजे , अल्लाह को पूजे ।

धर्म तो वो है जो अपना इमान बरकरार रखे

ईमानदारी निभाए। किसी का विश्वाश ना तोड़े ।धर्म चाहे कोई भी हो , हर धर्म में एक बात समान है ।

सभी जीवों पर दया भाव बनाए रखे । जिसे जैसी भी मदद की जरुरत हो उसकी मदद करें । धोखा ना करें ,ये होता है धर्म । ऐसे तो लोग आश्रम में दान पुण्य करेगे , लेकिन घर में माता-पिता को रहने नहीं देते । उन्हे वृद्धाआश्रम में छोड़ आते है । ये कहाँ का धर्म है । धर्म ये नहीं कहता ,,,, मेरे लिए तुम भूखे रहो और उसे उपवास कहो। मंदिर में जाकर दीये जलाओ। शिवलिंग पर लोटा भर दुध चढ़ाओ। गिरिजाघर में जा कर मोमबत्ती जलाओ। मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ो चादर चढ़ाओ ।

हम चाहे किसी भी रुप में पूजे भगवान को ।

पर हमारा सर्व प्रथम धर्म ये होना चाहिए कि हम

किसी के घर जिंदगी को रोशन करें । इस दुनिया में अनेको धर्म है अनेको रिती-रिवाज है फिर भी हम सब एक दुसरे से जुड़े हुए है । ऐसे तो हर कोई अपने अपने धर्म को ही मानते है। फिर भी कई बार देखा गया है लोग दूसरे धर्मो के स्थान पर भी जाते है । ये अच्छी बात है ।

   क्यों मानव ने कर दिया धर्म का बटवांरा जब कि एक है मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा।

इनमे रहने वाला भी एक ही है , इनको पूजने वाले भी एक ही मिट्टी के बने है

हम चाहे किसी भी जाति के हो , किसी भी भाषा भाषी के हो । हड्डी खून और मांस एक ही है ।फिर क्यों बट गए हम जात पात में। क्यों बट गए हम अलग अलग धर्मो में । क्यों जातिवादी हो गए। एक ही धरती पर रह कर , एक ही फसल खाकर ।

  क्या भगवान ने हमें इसी काम के लिए भेजा है धरती पर । कहा,,,, जाओ मनुष्य तुम ,, हमारा अलग अलग नामो से प्रचार करो । अपने अपने धर्म की खातिर लड़ो, मरो , कटो जो मर्जी हो करो ।

     बचपन में एक बात सिखाई गई थी हमें । सब ने स्कूल में ये जरुर पढ़ा होगा ।,,,,


(हिंदू , मुस्लिम , सिक्ख ईसाई , हम आपस में है भाई ।)


बचपन में ये बात सिखाई

अब क्यों ये सीख़ ठुकराई

धर्म के नाम पर इंसान के

कितने हिस्से कर दिये

धर्म के नाम पर न जाने हमने

खड़े कितने किस्से कर दिये

एक है हम सबका मालिक

फिर भी उस मालिक के

कितने हिस्से कर दिये है

क्या सोच रहा होगा वो

ऊपर बैठा बैठा हमारे बारे में ।

मुझ खातिर जीते मरते ये

और मेरे ही जिगर के देखो

टुकड़े टुकड़े कर दिये ।


   " अरे नीलम तु क्या कर रही है अकेले बैठे बैठे।"

नीलम,,

" कुछ नही यार । बस थोड़ा सा मन हो रहा था धर्म पर लिखने का , बस वही लिख रही थी। कल कॉलेज में मेरी स्पीच है, स्टेज पर परफॉरम करना है । "

     बानी ,,

" हूँ , अच्छा तो ये क्या लिखा है दिखाना। "

नीलम।

" हा हा ले पढ़ ले और बता कैसा है."

बानी,,,,

" हूँ,,,

और एक सरसरी निगाह से पढ़ डाली।

"वाह अच्छा लिखा है."

नीलम,,,

"चल तू बैठ मैं कॉफी ले के आती हूँ । "

और दोनो कॉफी के साथ धर्म के विष्य पर विचार विमर्श करने लगी।

बानी,,,,,

, देख यार कुछ नही हो सकता है इसका , सदियों से चला आ रहा है ये मसला । अब तू ही सोच जो रीत सदियों से

चली आ रही हो वो एक दिन में तेरे मेरे बदलने से नही बदलेगी ,इसलिए अब इसे रख दे । और चल मेरे साथ शपिंग पर । "

दोनो सहेलिया सोपिंग पर गई।


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