Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sheikh Shahzad Usmani

Tragedy Action Thriller

4  

Sheikh Shahzad Usmani

Tragedy Action Thriller

ग़ब्बर संग गड़बड़ (भाग-1)

ग़ब्बर संग गड़बड़ (भाग-1)

4 mins
470


【भाग-1】 :

रिटायर्ड पुलिस अधिकारी बल्देव सिंह को जब से जेलर की जवाबी चिट्ठी और एसीपी प्रद्युम्न साहब की सूचनात्मक चिट्ठी मिली, उनकी रातों की नींद हराम थी। डायरी के पन्ने भरे जा चुके थे और नक्शे बनाये जा चुके थे और बहुत से फाड़े भी जा चुके थे। उनका दिमाग़ आज भी एक कुशल पुलिस अधिकारी की तरह काम कर रहा था; बल्कि एक जासूस और गुप्तचर की माफ़िक़ भी। आख़िर रामगढ़ के लोगों को डाकू समस्याओं से मुक्त कराना था। चिट्ठियों में बताई गई तारीख़ आज आ ही गई। ठाकुर साहब तेज़ क़दमों से घर के चबूतरे पर चहलक़दमी कर रहे थे। 

उधर उनके इन्तज़ामात मुताबिक़ रामगढ़ की कर्तव्यनिष्ठ, चंचल और विश्वसनीय ताँगेवाली बसंती, बताये गये समय पर रामगढ़ के रेल्वे स्टेशन पर पहुंच चुकी थी एक संदेशवाहक आदमी को लेकर।

कुछ ही पलों में निर्धारित समय पर समय की पाबंद रेलगाड़ी स्टेशन पर रूकी और उस में से सबसे पहले वर्दी पहने हुए एक इंस्पेक्टर उतरा। फ़िर उसके बाद सिविल ड्रेस में कुछ स्मार्ट आदमी उतरे। उनका स्वागत करने के लिए ठाकुर द्वारा भेजे गये संदेशवाहक आदमी ने पहले इंस्पेक्टर का स्वागत किया; फ़िर शेष आदमियों को उसने नमस्कार कहा। ठाकुर द्वारा दी गई ताज़ा चिट्ठी इंस्पेक्टर को सौंपी गई।

"हाँ, मैं इंस्पेक्टर फ्रेडरिक ही हूंँ। आ गये हम रामगढ़.... हे हे ! ... और ये है हमारी टीम ! कितने घोड़े हैं... हमारे लिए?"

"इंस्पेक्टर साहिब... घोड़े नहीं ! एक बढ़िया ताँगे की व्यवस्था है आप सब के लिए !" संदेशवाहक आदमी ने कहा, "चलिए .. बाहर की तरफ़ नीम के पेड़ के नज़दीक़ !"

तभी उस टीम में से एक तंदुरुस्त सा आदमी कुछ कड़क आवाज़ में बोला, "इंस्पेक्टर फ्रेडरिक, पहले तुम अभिजीत के साथ ताँगे पर ठाकुर बल्देव सिंह के घर पर पहुंचो। बाक़ी हम अलग-अलग रास्ते से वहाँ पहुंचेंगे। हमें डाकुओं के गुप्तचरों से सतर्क रहना होगा।

"जी, एसीपी साहब !" फ्रेडरिक ने सेल्यूट मारते हुए कहा।

संदेशवाहक आदमी भी हाथ जोड़कर अभिवादन करता हुआ बोला, "तो आप हैं सीआइडी वाले एसीपी साहब !"

"हाँ जी, मैं प्रद्युम्न हूं... और मेरे साथ सिविल ड्रेस में ये हैं इंस्पेक्टर दया और इंस्पेक्टर वीरेन ! हम तीनों भिन्न रास्तों से ठाकुर साहब के यहाँ पहुँचना चाहते हैं, पैदल या घोड़ों पर... किंतु बिना किसी हड़बड़ी और गड़बड़ी के ! ठाकुर साहब को सब कुछ चिट्ठी में बता दिया गया था !" एसीपी प्रद्युम्न ने अपने हाथ की उंगलियाँ स्टाइलिश घुमाते हुए कहा।

"जी साहब, बस कुछ ही दूर पैदल चलना पड़ेगा; फ़िर आपके लिये सधे हुए घोड़े मिल जायेंगे बताये अनुसार।" यह बताते हुए संदेशवाहक उन तीनों को एक दूसरे रास्ते से आगे ले गया।

इधर इंस्पेक्टर फ्रेडरिक, सीनियर इंस्पेक्टर अभिजीत को नीम के पेड़ के पास वाले ताँगे तक ले गया, जहाँ बसंती एक हाथ से अपनी लम्बी चोटी पकड़ कर उसे एक हंटर की तरह घुमा-घुमा कर अपनी निगाहें इधर-उधर घुमा रही थी।

"सर, ये रहा वो ताँगा... और वो रही वो ताँगेवाली!" फ्रेडरिक ने आँखें मटका कर अभिजीत से कहा। अभिजीत के क़दमों ने गति पकड़ी और ताँगे के नज़दीक़ खड़े होकर तांगेवाली को उत्सुकता से देखने लगा।

"वाह... यूँ कि जैसे वो रेलगाड़ी वक़्त की पाबंद है और ये बसंती पाबंद है... वैसे ही आप लोग भी पाबंद ही हैं !" ताँगेवाली स्वयं ही बोल पड़ी, " यूँ कि लोग मुझे बसंती कहते हैं और यह घोड़ी है मेरी धन्नो ! ... चलिए... पधारिए आप दोनों!" बसंती ने उन दोनों से कहा। 

अभिजीत अभी भी ताँगेवाली यानि बसंती को तके जा रहा था। फ्रेडरिक ने टोका मारते हुए कहा, "सर, यह हमें सही समय पर तो पहुँचा देगी न ! वहाँ हमारा इंतज़ार हो रहा होगा न !"

"चल धन्नो ! अब तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है !" बसंती ने ताँगे पर चढ़कर झटके से लगाम खींचते हुए कहा और उन दोनों की ओर गर्दन घुमा कर बोली, "वैसे तो हमें आप दोनों के नामों से कोई मतलब नहीं... आपकी तस्वींरें ठाकुर साहिब ने हमें दिखा ही दीं थीं... लेकिन यूँ कि आप हमारे नये मेहमान हैं, तो हम जैसे मेजबान को आप अपने नाम बता ही दो, तो कुछ बिगड़ेगा तो नहीं, है न !"

तांगा तेज गति में चल रहा था। तभी अभिजीत बोला, "जी बसंती जी, मैं हूंँ अभिजीत और मेरे साथ ये है हँसमुख दोस्त फ्रेडरिक !"

"वो तो लग ही रहा था ! ठाकुर साहब ने आप दोनों के बारे में मुझे बहुत सी ज़रूरी बातें बता ही दीं थीं।... यूँ कि बसंती को बेफ़िज़ूल की बातें करने की आदत तो है नहीं ! ... फ़िर भी अगर यह बसंती, इसका तांगा और दीगर घोड़े आपके किसी काम आ सकें... तो इससे बेहतर मेजबानी और क्या होगी साहब?"

कुछ देर बाद बसंती ने तांगे की गति एकदम धीमी करते हुए कहा, "लो साहब, ये आ गये आप अपने ठाकुर साहब के घर पर! ... और अब पैसे-वैसे देने की ज़रूरत नहीं है आपको ! ... पहले अपना काम करिए, बस !"

दोनों सवारियां नीचे उतरकर ठाकुर साहब के घर पर नज़र दौड़ाने लगीं। अभिजीत ने पीछे मुड़कर बसंती की ओर देखा ही था कि फ्रैडरिक बड़बड़ाया, "तेरा क्या होगा ...अभिजीत !"

बसंती ने उन दोनों को ठाकुर साहब के कमरे तक पहुंचा दिया, जहाँ पहले से ही बैठे एसीपी प्रद्युम्न और इंस्पेक्टर दयानंद (दया) को देखकर वे एकदम चौंक गये।

◆【इसके बाद क्या हुआ? ... पढ़ियेगा अगली कहानी (भाग-2) में... "अब तेरा क्या होगा, ग़ब्बर? 】◆


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy