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वो पहला प्रेमपत्र

वो पहला प्रेमपत्र

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ससुराल से पहली बार आई सुहाना जब अपने कमरे की अलमारी को खोला तो कुछ किताबें गिरी उसी के साथ एक पत्र भी गिरा जो उसने दस साल पहले लिखी थी।

जब वह ग्याहरवी क्लास में थी। क्लास में सबसे स्मार्ट लड़का रोहन जिससे वो प्यार करने लगी थी। जब भी देखती उसे बस देखते ही रह जाती, वो पीछे सीट पर बैठती कि उसे बार-बार बार देख सके...

उस समय फोन भी बहुत कम लोगो के पास रहता था, सुहाना ने तब प्रेमपत्र लिखने को सोचा और एक दिन लिखना शुरू किया।


"पहली बार पत्र लिख रही हूँ समझ नहीं आ रहा क्या लिखू... पर आज तुम्हारे प्यार ने लिखने को मजबूर कर दिया। ना जाने तुम में कैसी कशिश है मैं तेरी ओर खींची जाती हूँ, जब भी तुम सामने आते हो मैं खुद को भूल जाती हूँ। तुम क्या सोचते हो मेरे बारे में, मुझे पता नहीं। तुम मुझसे प्यार करते हो भी या नहीं, पर मेरा दिल तो बस तुझ को ही चाहे, तुझ को ही दुआ में मांगे भगवान से, अगर ये खत पढ़ना तो तुम मुझे जवाब ज़रुर देना। तुम्हारा हर फैसला मुझे मंजूर होगा।"

लिख तो लिया था खत सुहाना ने पर जब भी देने की कोशिश करती धड़कने इतनी तेज हो जाती वो घबराकर फिर से बैग में रख देती। उसके मन में चल रही कशमकश को समझ नहीं पा रही थी।ये कैसी कशमकश है प्यार भी है और खत भी देना है पर जब भी देने की कोशिश करती दिल मना कर देता है।


याद है उस दिन चौदह फरवरी था सुहाना ने भी ठान लिया कि आज वो "अपना लिखा प्रेमपत्र रोहन को ज़रुर देगी।" पर हिंदी की क्लास में जान्हवी के पास से रोहन का दिया प्रेमपत्र मिला तो सुहाना का तो दिल ही टूट गया। उसने अपना पत्र बैग में ही रख लिया।

मतलब आज तक वो मुझे नहीं जान्हवी को देखता था और मैं बुद्धू थी, जो सोच रही थी कि वो मुझे प्यार करने लगा है।

घर आकर वो बहुत रोई पर खुद को संभाला। और अपनी पढ़ाई में लग गयी। उसने रोहन को जाहिर भी ना होने दिया कि वो उससे प्यार करती थी। इंटर के बाद रोहन के पापा का तबादला हो गया और वो चला गया शहर और सुहाना के जीवन से। फिर कभी सुहाना ने उसको याद नहीं किया।

पढ़ाई पूरी होने के बाद पापा ने सुहाना की शादी राहुल से करा दी। राहुल बहुत ही सुलझा और समझदार था। सुहाना भी खुश थी राहुल के साथ..


आज इस तरह मिला पहला प्रेमपत्र पढ़ कर सुहाना मुस्करा रही थी.. अपनी कच्ची उम्र की नादानियों को सोचकर..उसने पत्र लिया और माचिस जलाई उस प्रेम पत्र को जला दिया। जो लिखा था पर कभी दिया नहीं।



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