ये कैसा उसूल
ये कैसा उसूल


रचना आज बहूत खुश थी उसे मनचाहा पति मिला था। अपूर्व के साथ रचना का प्रेम विवाह हुआ था घरवालो की रजामंदी से दोनो परिणयसुत्र मे बधे थे।
रचना शादी से पहले ऑफिस जाती थी। अपूर्व को भी उसके जॉब से कोई परेशानी नहीं थी।
आज जब ऑफिस के लिए रचना तैयार हुई तो। सासूमाँ ने देखते ही कहा "बहू तू ऑफिस नहीं जाऐगी"।
पर क्यू माँजी.....
हमारी घर की बहूऐ नौकरी पर नहीं जाती और तू भी नहीं जाऐगी।
पर शादी से पहले ऐसी कोई बात ही नहीं हुई थी कि मुझे नौकरी छोड़ना पड़ेगा।
पर मैने तो ये भी नहीं कहा था कि तू नौकरी करना।
माँ और रचना की बाते अपूर्व सुन रहा था.... सुनकर अपूर्व ने कहा.....
माँ कैसी बात कर रही है आप अगर रचना नौकरी करना चाहती तो इसमे बुराई क्या है?
तुम्हे पता है ना कि हमारे घर की औरतो का नौकरी करना उसूलों के खिलाफ है।
तो माँ ये उसूल सबपर होना चाहिए कावेरी तो करती नौकरी? उसे तो आपने मना नहीं किया....
कावेरी इस घर की बेटी है बहू नहीं जो उसे मना करू नौकरी करने से....
अच्छा तो बेटी नौकरी कर सकती है पर बहू नहीं ये कैसा उसूल है। मै नहीं मानता ऐसे दकियानूसी उसूलो को। जो बहू बेटियो मे फर्क करे। और रही बात रचना की तो रचना नौकरी पर जाऐगी,,,,,उसे नौकरी करना है या नहीं करना है ये तय करना उसका अधिकार है। वह इस घर की बहू है तो इसका मतलब नहीं कि उसे अपने फैसले लेने के हक नहीं। हमारी तरह वह भी आजाद है फैसला लेने के लिए
अगर मेरी बातो से किसी को आपत्ती है तो बता दे, हम घर छोड़कर चले जाऐगे।
चलो रचना मै तुम्हे ऑफिस छोड़ देता हू......
इसबार सासूमाँ ने टोका नहीं कि "बहूऐ नौकरी पर नहीं जाती"।