Nalini Mishra dwivedi

Drama Inspirational

5.0  

Nalini Mishra dwivedi

Drama Inspirational

गरीबी

गरीबी

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आज दस सालो बाद मै अपनी गाँव की ओर रुख किया। करीब पंद्रह साल पहले गाँव छोड़ शहर में बस गया तब से गाँव की ओर नहीं जा पाया।


मेरे बचपन का साथी बिरजू गाँव पर रहकर खेती संभाले हुए था और मै वहाँ से निकल शहर में नौकरी कर ली थी। यू तो शहरी रहन-सहन और गाँव के रहन-सहन मे जमीन आसमान का अंतर है। पर दोनो की तुलना नही की जा सकती।


मै अपने गाँव के पास पहुँचा तो देखा बहुत बदलाव हुआ है। कच्ची सड़को की जगह पक्की सड़को ने ले ली है। कच्चे मकानो की जगह पक्के मकानो ने ले ली है। खेतो में हरियाली छाई हुई है। बड़ा सुकुन मिल रहा था। इस शुद्ध वातावरण में शोर-शराबे से दूर।


पर जो बदलाव नहीं हु थे वह है मजदूरो के जीवन मे, और इनका कारण गाँव मे बैठे जमींदार है। जो मजदूरो की प्रगति देख नही सकते। उनमे से एक मेरा दोस्त बिरजू था।


जब मै उसके यहाँ पहुंचा तो बड़ा खुश होकर स्वागत किया। हम अभी बात कर रहे थे। तभी दीनू काका आते है। दीनू काका बिरजू के खेत में काम करते थे।


“काका धान की रोपाई हो गयी?”


“हाँ, मालिक हो गई है। आपसे थोड़ी मदद चाहिए?”


“कैसी मदद?”


“मालिक पांच सौ रूपये चाहिए।”


“किस लिए?”


“बेटे की किताब लेना है।”


दीनू काका का जवाब मेरे दोस्त को अच्छा नही लगा।


“अभी आपने पिछला चुक्ता किया नही, उसका सुद ही बस चुकाया है। और फिर से पाँच सौ रुपये। वैसे क्या करोगे अपने बेटे को पढाकर? बाद में तो मेरे खेत में ही काम करेगा।”


“माफ कीजियेगा मालिक मै अपने बेटे को गुलामी नही करने दूंगा!” दीनू काका के आवाज में एक आत्मविश्वास था अपने बेटे के लिए।


“खुद की "फटी जेब" है, और बाते बड़ी बड़ी कर रहा है। मै तुम्हे एक रुपये नही दूंगू, देखता हूं कौन मदद करता है तुम्हारी।”


कहते हुए बिरजू कुछ काम से अंदर चला गया। दीनू काका जाने लगे तो मैने उन्हे रोका।


“किस कक्षा मे पढ़ता है आपका बेटा?”


“साहब पांचवी में।”


मैने उन्हे पाँच सौ रूपये दिये। उनकी आँखों मे खुशी की चमक थी।


“बहुत बहुत धन्यवाद बेटा, मै आपका पैसा जल्द ही लौटा दूगां।आज मेरे बेटे ने जीद की थी कि आप को बिना किताब के घर नही आना। और मेरा बेटा पढाई करना चाहता है। उसे मै निराश नही करना चाहता था खाली हाथ जाकर।”


“काका आप अपने बेटे की किताब मेरी तरफ से खरीद लीजिएगा। और ये मेरा कार्ड है। अगर आपको अपने बेटे की पढाई के लिए कोई जरुरत पड़ेगी तो आप मुझे फोन कर दीजिएगा, मै हर संभव कोशिश करुगा।”


"बेटा तू तो मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया है। भगवान हमेशा भला करे आपका।”

दीनू काका जा चूके थे।"


“मेरा दोस्त बिरजू बाहर आया। माफी चाहता हूं यार तुझे बैठा कर मै चला गया।”


“कोई बात नही। बहुत समय बाद आया तो बस चारो तरफ निरीक्षण कर रहा था। वैसे तूने दीनू काका को पैसे क्यूं नही दिये।”


“अरे ये मजदूर अपने बच्चे को मजदूरी से आजादी दिलाना चाहते है पढा लिखा कर, और मै ऐसा होने नहीं दूंगा।”


“तू किसी से जबरदस्ती मजदूरी नहीं करा सकता, अगर दीनू काका अपने बेटे को मजदूरी से आजादी दिलाना चाहते है तो इसमें बुराई क्या है। तुम जैसे जमींदार ऊपर बैठे रहते है जो मजदूरों को बढने नहीं देना चाहते। पर अब नही मै अब यहाँ गाँव के मजदूरों को इस गुलामी से आजाद कराने की कोशिश करुंगा।”

"फालतू में तुम अपना समय बर्बाद कर रहे हो। और दुश्मनी मोड़ ले रहे हो हम सब से।"


“बस मै यह चाहता हूं कि कोई और दीनूकाका को अपने बेटे के पढाई के लिये किसी के सामने हाथ ना फैलाना पड़े।”


शायद आज के बाद हम दोस्त ना रहे, पर दिल को एक सुकून मिल रहा था।

और मै चल पड़ा एक नये पथ की ओर।


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