फौजी
फौजी


जानकी जी का एक ही बेटा रतन वो आर्मी में था। रतन की शादी सुधा से हो जाती है। दोनों अपने जीवन में खुश थे। शादी के दो साल बाद उनको बेटा होता है। जिस समय बेटा हुआ वह सीमा पर तैनात था। जब उसे पता चला बेटा हुआ तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने कहा देखना सुधा एक फौजी का बेटा फौजी ही होगा। मैं जल्द ही अपने बेटे से मिलने आऊंगा। उधर सीमा पर हमला शुरू हो गया, दोनो तरफ से गोलियां चलने लगी। एक गोली रतन के सीधे सीने पर लगी, उसने मरते दम तक दुश्मनों को मार गिराया और खुद शहीद हो गया। पर अपने बेटे का चेहरा नहीं देख पाया। उधर सुधा ने बहुत देर से रतन का फोन ट्राई किया पर कोई उठा नहीं रहा था। अचानक किसी ने फोन उठाया तो पता चला रतन शहीद हो गया है। सुधा के हाथ से फोन छुट जाता है।
"क्या हुआ बहू, रतन ठीक है ना ? सुधा माँ जी को पकड़ कर रोने लगती है। माँ जी अब कभी अपने बेटे को नहीं देख पायेगे। एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी। पालने में लेटे यश की तरफ नजर गई। वह मुस्करा रहा था। उसे देखकर जीने की वजह मिल गई दोनों सास, बहू को।
समय की रफ्तार तेजी से बढ रही थी। यश अब पांच साल का हो गया था। सुधा ने घर खर्च चलाने के लिए सिलाई शुरू कर दी थी। एक दिन सुधा यश को लेकर मंदिर जाती है। वहाँ के पंडित बड़े ज्ञानी थे। जब सुधा ने पंडित को यश का हाथ दिखाया तो पंडित जी ने कहा, "एक फौजी का बेटा है देखना ये एक फौजी ही बनेगा।"
"नहीं पंडित जी मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा फौजी बने। बच्चे के मुट्ठी में लिखे तकदीर को नहीं बदल सकती बेटी तुम। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।"
जैसे जैसे यश बड़ा हो रहा था उसका लगाव आर्मी की तरफ बढ रहा था। सुधा ने बहुत कोशिश की कि यश कुछ और बने पर वह तो मन में ठान लिया था कि उसे फौजी बनना है और अपने पापा की तरह देश की रक्षा करना है।
एक दिन जानकी जी, "बहू तुम क्यों नहीं चाहती कि लल्ला फौज में जाये ?"
"माँ जी मुझे डर है कि कहीं अपने पापा की तरह यह भी हमें छोड़कर ना चल जाये।"
"बहू होनी को कौन टाल सकता है? अगर जिसे जाना होगा वह चला जायेगा, तकदीर में लिखा कोई नहीं बदल सकता। अगर तू लल्ला को मना करेगी फौज में ना जाये तो वह मान तो जायेगा पर कभी खुश नहीं रहेगा। औलाद की खुशी से बढकर इस दुनिया में कोई खुशी नहीं है बहू और अगर हम सब ऐसा ही सोचेगे तो कोई अपने बेटे को देश की रक्षा के लिये भेजेगा ही नहीं। आज के बच्चों की मुट्ठी में कल दुनिया की तकदीर है।"
"माँ जी आप सही कह रही हैं, मैं पुत्र मोह में पड़ गई थी और देश के बारे में सोचा नहीं। अब मैं खुद अपने बेटे को फौज में भेजूंगी।"
और जल्द ही यश फौज में भर्ती हो जाता है। जब पहली बार घर वर्दी में आया तो माँ और दादी दोनो अपने लल्ला की बलैयां उतार रही थीं।
सुधा मन में सोच रही थी कि सच मुट्ठी में लिखी तकदीर को कोई नहीं बदल सका।