फर्क क्यो?
फर्क क्यो?


माँ बहुत भूख लगी हैजल्दी दो कुछ खाने के लिए ?
लाती हू बेटा
रमा ने जल्दी से खाना निकाल कर गोलू के लिए लाई। गोलू ने मजे से खाना खाया। जब थाली किचन मे रखने गया तो माँ ने तुरंत कहा,,,, ये छोरो का काम नहीं मै ले जाती हू।
थोड़ी देर बाद मीरा आई माँ मुझे भूख लगी है, खाना दो
मीरा जाओ अपना खाना निकाल कर खाओ
पर माँ भइया को तो दी है निकालकर आप मुझे क्यो नहीं दे रही हो।
गोलू लड़का है और तुम लड़कीतुम अपनी बराबरी भाई से नहीं कर सकती। ना जाने ये बाते कितनी बार मीरा को सुनने को मिलती कि "कि तुम लड़की हो और वो लड़का" तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकती। तुम ये काम नहीं कर सकती। तुम वहा नहीं जा सकती
मीरा मन ममोस के रह जातीमीरा सोचती जब मै माँ बनूगी तो मैं अपने बच्चों में फर्क नहीं करुँगी। उनको एक जैसी परवरिश दूँगी। उन्हें हक बराबरी का दूंगी।
आज मीरा के दो बच्चे है "परी और पुरू" मीरा ने दोनों को बराबर की परवरिश दी। बेटे को कभी यह नहीं सिखाया कि तुम फला काम नहीं कर सकते, क्योंकि ये काम केवल लड़कियो का है। बेटा, बेटी को एक जैसी परवरिश दी।घर के कामो मे भी बेटा हाथ बटाता।
एक दिन रमा घर आई घर मे उस दिन मीरा और पुरू थे। बिना कहे पुरु उठा और नानी के लिए चाय बनाकर लाया।
ये क्या मीरा लल्ला से काम करवा रही है। परी कहा है ये काम परी को करना चाहिए?
कैसी बात करती हो माँ ये कहा लिखा है कि चाय बस औरते बना सकती है मर्द नहीं। आपकी ऐसी परवरिश ने भइया को आलसी बना डाला। वह छोटे-छोटे कामों के लिए भाभी पर निर्भर रहते है।
सुनकर मीरा की बाते रमा को आज अपनी गलती का एहसास होता है कि उसने भेदभाव क्यो किया। पर अब समझ गई थी और अब वह अपने पोते, पोतियो मे फर्क नहीं करेगी।