बन्दिश
बन्दिश
विद्यालय की ओर से “बाँध” दिखाने के लिये ले जाने की हुई उद्घोषणा के बाद सभी बच्चों में खुशी की लहर फैल गयी थी और सभी अपनी कक्षाध्यापिका के पास जा कर जाने वाले बच्चों की सूची में अपना नाम लिखाने लगे। तभी कक्षाध्यापिका ने देखा कि कक्षा मे सदैव आगे रहनें वाली लतिका सबसे पीछे की सीट पर सिर झुकाये उदास सी बैठी है।
उन्होने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर कर उसकी उदासी की वजह पूछी तो वह फ़फक कर रो पड़ी और बोली “धनाभाव ने उसके पैरो में बेड़ियाँ डाल रखी है। घर के हालात ठीक नहीं है।बड़ी मुश्किल से मातापिता विद्यालय का शिक्षा शुल्क ही चुका पाते हैं।
ऐसे में मैं उन पर अपनी कुछ समय की खुशी के लिये अतिरिक्त भार नहीं डाल सकती और वहाँ न जा कर मैं बहुत से अनुभवों से वंचित रह जाऊँगी इसलिये दुखी हूँ क्योंकि बीता समय लौट कर नहीं आता है।
सच तो यह है कि गरीबी अनजाने में बहुत सी अनचाही बन्दिशें स्वत: ही लगा देती है। इसके लिये किसी को दोष भी नहीं दिया जा सकता है।