आशीष का इंतजार और इंतजार खत्म हुआ
आशीष का इंतजार और इंतजार खत्म हुआ


आशीष, तुम गए तो क्या गए। तुमने तो मुझसे वादा किया था कि जिंदगी भर मेरा साथ निभाओगे। और फिर अचानक चले गए, बिना मिले, बस एक पत्र छोड़ दिया—"मैं जरूरी काम से जा रहा हूं, इंतजार करना, तुम्हें लेने जरूर आऊंगा।"
मैंने तुम्हें कई पत्र लिखे, पूछा कि कब आओगे। तुम्हारा इंतजार करते-करते 20 साल बीत गए। आज भी तुम्हारे खत का इंतजार है—आओगे या नहीं। मगर न तुम आए, न कोई पत्र।
थोड़ी देर आराम करने बैठी तो आंख लग गई। सपने में पुरानी यादें लौट आईं। हम दोनों स्कूल में साथ पढ़ते थे। दिनभर साथ रहते, घर भी पास-पास थे।
सब ठीक चल रहा था, फिर एक दिन तुम्हें अमेरिका से बुलावा आया। "आगे की पढ़ाई के लिए आ जाओ, यहां तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है।" और तुम बिना बताए चले गए।
मैंने भी अपने कामों में खुद को व्यस्त रखा। मां-बाप ने शादी के लिए कहा, मगर मैंने मना कर दिया। मुझे तुम्हारा इंतजार था। तुम्हारे वचनों पर विश्वास था। सोचा, एक दिन तुम्हारा पत्र आएगा और तुम भी लौटोगे।
मगर इंतजार लंबा होता गया। मां-बाप भी स्वर्ग सिधार गए। मैं अकेली रह गई। चाहती तो जिंदगी नए सिरे से शुरू कर सकती थी, पर नहीं किया। तुम्हारे इंतजार में 20 साल बिताए। अब और कितना इंतजार करूं?
अचानक आंख खुली। मैंने सोचा, एक और पत्र लिख दूं। जब कंप्यूटर पर पत्र लिखने गई, तो देखा तुम्हारा पत्र आया हुआ था—"तैयार रहना, मैं तुम्हें लेने आ रहा हूं।"
खुश तो हुई, मगर मन में संशय था। 20 साल बाद भला कोई कैसे आ सकता है? तुम्हारी भी अपनी जिंदगी होगी, परिवार होगा। मेरी अब क्या जगह रह गई होगी?
सोचा, कल आने दो, बात करूंगी। अगले दिन तुम आए, बोले, "तैयार नहीं हुई? मैं तुम्हें लेने आया हूं।" मैंने कहा, "पहले अपनी जिंदगी के बारे में बताओ। तुम्हारा भी तो परिवार होगा।"
तुमने बताया कि एक बड़ी परेशानी में फंसे थे। वहां की चमक-दमक में खो गए थे, एक स्कैम में फंस गए। तुम्हें लगता था कि मुझे परेशान नहीं करना चाहिए।
मैंने कहा, "एक दिन दो, मैं सब पता कर लूंगी।" अगले दिन सब सच पाया। फिर फोन किया, "तुम ठीक कह रहे थे। मैंने तसल्ली कर ली है। अब मैं शादी के लिए तैयार हूं।"
फिर हमारी शादी हो गई। 20 साल का इंतजार खत्म हुआ। तुम्हारे जवाब के इंतजार में जो समय बीता, वो आखिरकार सुखद अंत में बदल गया।