माँ के हाथ की रोटी
माँ के हाथ की रोटी
आज शहर से गाँव जाते आँखों से लगातार अश्रुधारा बह रही है नमिता की , अब कहाँ मिलेगी वो माँ के हाथ की रोटी और उसके प्यार की छांव ।भाई दूज पर जा रही है वह गाँव ,भाई के बहुत बुलाने पर वरना माँ के ना रहने पर उसकी कभी जाने की इक्षा ही नहीं हुई , पिता तो उसके कब के चल बसे थे , माँ के प्यार के सहारे ही दोनो भाई बहन बड़े हुए , आँगन में बने चूल्हे पर माँ गरमागरम रोटी बनाती और वह और उसके बड़े भैया दोनो बैठकर उसका लुत्फ उठाते थे , नीम की ठंडी छाँव और माँ के प्रेम स्नेह तले दोनो कब बड़े हुए और भैया की शादी हुई माँ ने बहुत उत्साह से भाभी के लिए सारी तैयारियां की फिर उसकी शादी हुई तब भी माँ बहुत खुश थीं पर शायद उसकी जुदाई माँ सह नही पाई और बिस्तर से लग गई ,वह भी अपनी नई गृहस्थी में मग्न थी शुरू में जल्दी जल्दी आई फिर ससुराल की जिम्मेदारी में इतनी खो गई कि आना कम हो गया ,और फिर एक दिन माँ के देहांत की खबर सुनकर ही वह गाँव आ पाई थी ,बहुत रोई वह माँ का मरा मुख देख कर भाभी ने बताया आखिरी तक वह नम्मू नम्मू करती रही ।
उसके बाद उसका कभी गांव जाने का मन नही हुआ , अब भैया के बहुत बुलाने पर वह जा रही है ।
घर पहुँचने पर देखा आज भी वह चूल्हा वहीं आँगन के बीचोबीच है और भाभी तो साक्षात माँ का ही रूप हो गई वही पहनावा वही रूप नमिता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने उसे और भैया के लिए चूल्हे के पास ही थाली लगा गर्म रोटी परोसी तो पहला कौर मुँह में डालते ही उसके मुंह मे माँ के हाथ की रोटी का स्वाद घुल गया ,वह उठकर भाभी के गले लग गई -"भाभी माँ "उसके मुंह से निकला और आँखों से अश्रुधारा निर्बाध बहने लगी ।
रिश्तों की कीमत फिर उसकी नज़रों में ऊपर उठ कर आ गई ,भैया भाभी दोनो खुश थे ।