पगली नंबर पांच
पगली नंबर पांच
जब नौ महीने का था तो कैसे उसके पीछे पीछे घुटने के बल चला आता था।
एक साल का हुआ तो कुछ काम करने ही नहीं देता था। बस चाहता था की वो उसके साथ खेलती रहे।
दो साल का हुआ तो हर पल उसके साथ पार्क चलने की ज़िद करता था। जब वो खाना खा लेता था तो वो कभी कभी उसके पेट से खाना निकाल लेने की एक्टिंग करती थी और वो बदले में उसकी नाक ले कर अपनी नाक में लगा लेने की।
तीन साल का हुआ तो कितना रोया था स्कूल जाने पर, उसकी चुन्नी का पल्लू छोड़ ही नहीं रहा था। रोज़ वो ही उसे उंगली पकड़ कर स्कूल ले जाती थी और रोज़ ही वो स्कूल के गेट से अंदर जाने में आनाकानी करता था। खाना उसी के हाथ से खाने की ज़िद करता था। ब्याह- शादी, पार्टी -वो किसी से ज्यादा बात नहीं कर पाती थी बस उसी के साथ सारा वक्त निकल जाता था।
चार साल में कितनी मासूमियत से बोला था की उसी से शादी करेगा बड़ा होकर।
कितना ड़र गयी थी वो जब झूले से गिर कर नाक तुड़वा बैठा था। कितना कोसा था उसने खुद को की क्यों उसे उस झूले पर चढ़ने दिया !
पांच साल का होने पर तो रोज़ ही पूछता था की वो किसे ज्यादा प्यार करती है उससे या फिर पापा से। कभी कभी वो उसे चिढ़ाने के लिए कह देती थी की पापा को ज्यादा प्यार करती है तो कैसा चिढ़ कर वो सारा घर सर पर उठा लेता था।
और भी जाने क्या क्या यादें है याद करने के लिए ! हर साल से जुड़ी ढेरों यादें। वो सब यादें क्रम बदल बदल कर एक चलचित्र की तरह उसके सामने घूमती रहती है। तो कभी कभी आज भी अचानक हॅंस पड़ती है वो बिना बात के। अपने बेटे को याद कर के। हमेशा चुप और कभी कभी बिना बात के हँस पड़ने वाली उस बूढ़ी औरत को सब पगली नंबर पांच कहते हैं। वृद्धाश्रम में ऐसी बूढ़ी पगली माँ वो कोई अकेली थोड़े न है। उनकी जैसी कई हैं जो पगला गयी हैं। जिन पर जान छिड़कती रहीं वही बच्चे उनसे पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें यहाँ छोड़ गए। एक बार पीछे पलट कर भी नहीं देखा। बस ये पगली माँएं ही जाने क्यों पलट पलट कर आज भी दरवाज़े को देखती रहती हैं।