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केतकी

केतकी

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केतकी और रोहन की शादी को कुछ ही दिन हुए थे। दोनों हनीमून पर गोआ घूमने गये थे। सवेरे सवेरे दोनों घूमने के लिये तैयार हो रहे थे कि केतकी को देख रोहन की त्यौरियाँ चढ़ गईं....

“ ये क्या ? ये तुमने क्या बहन जी टाइप साड़ी पहन ली ? गोआ आकर कोई साड़ी पहनता है ? तुम माडर्न ड्रेसेज़ नहीं लाई हो क्या ?”

कहाँ तो केतकी सोच रही थी कि गुलाबी शिफ़ॉन की साड़ी में देख, रोहन उसे निहारता रह जायेगा और उसकी तारीफ़ों के पुल बाँध देगा परन्तु रोहन....

रोहन दिल्ली में पला बढ़ा इंजीनियर था और केतकी छोटे से शहर ताल्लुक़ रखने वाली लड़की। केतकी देखने में बला की खूबसूरत थी। उसका साँचे में ढला शरीर , दूधिया रंग , कजरारी आँखें और कमर तक लहराते काले घुंघराले बाल, किसी को भी सम्मोहित करने के लिये काफ़ी थे। रोहन के साथ उसकी शादी भी इसी ख़ूबसूरती के कारण हुई थी। रोहन के माता पिता को केतकी देखते ही पसन्द आ गई थी और आनन फ़ानन में रोहन और केतकी विवाह सूत्र में बंध गये थे। दोनों को एक दूसरे को जानने समझने का अवसर भी न मिला था।

रोहन चाहता था कि उसकी पत्नी आजकल की लड़कियों की तरह हर तरह के परिधान पहने और उसके साथ मॉडर्न सोसाइटी में स्वयं को अच्छी तरह से समायोजित कर सके परन्तु केतकी को साड़ी में देख कर उसका मूड बिगड़ गया था।वह सोच रहा था...

“माँ, पापा ने कैसी गँवार लड़की से मेरी शादी कर दी...मुझे कुछ बोलने समझने का मौक़ा भी नहीं दिया....केतकी को तो अंग्रेज़ी बोलना भी नहीं आता होगा। मेरे और दोस्तों की पत्नियाँ कितनी फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलती हैं.....छोटे से शहर की केतकी तो उनके बीच में सामंजस्य भी नहीं बैठा पायेगी ? उनके बीच तो केतकी कहीं नहीं ठहर पायेगी....केवल रूप से क्या होता है ?”

रोहन को सोच में डूबे देख, केतकी ने हिचकते हुए उत्तर दिया....

“ मैंने मॉडर्न ड्रेसेज़ कभी नहीं पहनीं इसलिये मैं उनमें सहज महसूस नहीं करती...आपको पसंद हैं तो पहन लूँगी , परन्तु मैं अभी यहाँ तो नहीं लाई हूँ “

रोहन उसी बिगड़े मूड के साथ केतकी को लेकर बेनॉलिम बीच के निर्जन से समुद्रतट पर जा पहुँचा और बोला,

“ तुम यहीं बैठो मैं अभी कुछ खाने के लिये लेकर आता हूँ “

काफ़ी देर तक यूँ ही अकेले भटकने के बाद जब रोहन वापस केतकी के पास पहुँचा तो वह उसे मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया। केतकी क़रीब दस पंद्रह छोटे स्थानीय बच्चों के बीच घिरी बैठी थी और ढेर सारी एकत्रित की गईं समुद्री सीपियों से उन्हें जोड़ना - घटाना सिखा रही थी। वह बच्चों के बीच किसी ताज़े गुलाब के फूल की तरह लग रही थी। वे बच्चे भी उससे घुलमिल गये थे। उन्होंने आजतक कोई ऐसी पर्यटक नहीं देखी थी जो उन्हें गणित का बोझिल जोड़ना घटाना इतने आसान और मज़ेदार तरीक़े से सिखाये।तभी उनमें से किसी बच्चे ने पूछा

“ दीदी, आसमान और समुद्र नीला क्यों दिखता है।“

केतकी ने उन बच्चों की बालसुलभ जिज्ञासाओं को शांत करना आरम्भ कर दिया था। 

सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर केतकी का यह रूप रोहन को आल्हादित कर रहा था। रोहन को देख, केतकी थोड़ा गंभीर हो गई और बच्चों से बोली 

“ आज जाओ दोस्तों, कल फिर मिलूँगी और फिर कुछ नया सिखाऊँगी “

रात के खाने के लिये रोहन और केतकी किसी रेस्टोरेंट में गये। वेटर जब खाने का ऑर्डर लेने आया तो रोहन मेनू कार्ड लेकर कुछ बोलता उससे पहले ही केतकी ने अंग्रेज़ी में खाने का ऑर्डर देना शुरू कर दिया। उसका आत्मविश्वास देख कर रोहन दंग रह गया। थोड़ी ही देर में एक विदेशी महिला उनकी टेबल पर आयी और उसने केतकी की साड़ी और उसके रूप की प्रशंसा के पुल बाँध दिये। केतकी, उस विदेशी महिला के साथ काफ़ी देर तक बातें करती रही।

विदेशी महिला ने अंग्रेज़ी में रोहन से कहा, 

“ मुझे भारतीय नारियाँ साड़ी में बहुत खूबसूरत लगती हैं....आप क़िस्मत के बहुत धनी हैं कि आपको इतनी खूबसूरत और अच्छी पत्नी मिली है।“

रोहन ने भी उस विदेशी महिला की हाँ में हाँ मिलाई और अपना हाथ केतकी के हाथ पर रख दिया। वह सोचने लगा 

“ आधुनिकता के बारे में मेरी सोच कितनी ग़लत थी....मैं सोचता था कि साड़ी पहनने वाली छोटे शहरों की लड़कियाँ गँवार होती हैं और मॉडर्न सोसाइटी में मूव नहीं कर सकतीं....केवल आधुनिक कपड़े पहनने से कोई आधुनिक नहीं हो जाता....आत्मविश्वास से परिपूर्ण व्यक्ति ही सही मायने में आधुनिक होता है....माँ पापा ने कितनी खूबसूरत, सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास से परिपूर्ण लड़की को मेरे लिये चुना है....मैं सचमुच बहुत भाग्यशाली हूँ जो मुझे केतकी जैसी पत्नी मिली है “

अब रोहन के मन से सारे नकारात्मक विचार तिरोहित हो चुके थे और प्रेम का अँकुर अब नन्हीं कोंपल का रूप ले रहा था।


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