Anshu Shri Saxena

Tragedy

4.6  

Anshu Shri Saxena

Tragedy

इंसानियत

इंसानियत

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वह रेलवे स्टेशन के बाहर भीख माँग कर अपना गुज़ारा करता था । मैले कुचैले फटे कपड़े , बेतरतीब दाढ़ी और मानसिक रूप से शायद विक्षिप्त, यही पहचान थी उसकी । आज कहीं से एक नवजात कुत्ते का बच्चा उसके पास आ गया था । वह भूख प्यास से बिलबिलाता , लगभग मरणासन्न अवस्था में था । भिखारी स्टेशन पर स्थित चाय की गुमटी पर गया । चाय वाला उसे रोज़ की तरह दस रुपये में डबलरोटी का पैकेट देने लगा तो भिखारी बोला “ आज डबलरोटी नहीं चाहिये.... दस रुपये में थोड़ा दूध दे दो, कुत्ते के बच्चे के लिए “ 

दुकानदार ने उससे आश्चर्य से पूछा “ फिर आज तुम क्या खाओगे ? एक कुत्ते के बच्चे के लिये खुद भूखे रहोगे ?”

भिखारी ने हँस कर कहा “ मैं एक दिन नहीं खाऊँगा तो मर नहीं जाऊँगा , परन्तु कुत्ते के बच्चे को यदि आज दूध नहीं मिला तो वह ज़रूर मर जायेगा....मैं अपने पेट के लिये किसी बेज़ुबान की जान नहीं ले सकता। “

दुकानदार ने उसे दूध के साथ साथ डबलरोटी का पैकेट थमाते हुए कहा “ ये लो भाई, मैं भी धंधे के लिये , तुम्हें भूखा रखने का पाप अपने सिर नहीं लेना चाहता....और हाँ, थोड़ी चाय बची है, उसमें डबलरोटी डुबो कर खा लेना “वहाँ इंसानियत खड़ी मुस्कुरा रही थी ।



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