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Sonia Goyal

Tragedy Inspirational

4.1  

Sonia Goyal

Tragedy Inspirational

मासिक धर्म छूत का रोग नहीं

मासिक धर्म छूत का रोग नहीं

13 mins
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(यह रचना भले ही पूर्णतः काल्पनिक है, पर ऐसी स्थिति से हर एक लड़की को कभी ना कभी गुज़रना ही पड़ता है। इतने बदलाव के बाद भी हमारे समाज में अभी तक बहुत सी जगहों पर मासिक धर्म पर खुलकर बात नहीं की जाती, लड़कियों में इसके लिए एक झिझक होती है और मैं भी उनमें से ही एक हूं, पर आज मैं इस झिझक को एक तरफ़ रखकर इस विषय पर एक कहानी पेश करना चाहती हूं, ताकि मैं भी लोगों का नजरिया बदलने में अपना कुछ योगदान दे सकूं।)

मिशा रूपनगर में रहने वाली एक सुंदर और सुशील लड़की है। वह नौंवी कक्षा में पढ़ती है और हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आती है, इसके लिए वो बहुत मेहनत करती है। मिशा के परिवार में उसके पापा राजीव, मम्मी आरती और छोटा भाई दीप रहते हैं।

मिशा पास ही के स्कूल में पढ़ती है और वो अपने ही पड़ोस की एक लड़की रूही, जोकि दसवीं कक्षा में पढ़ती है, के साथ स्कूल जाती है। मिशा की जिंदगी हंसी-खुशी चल रही थी कि एक दिन जब वो स्कूल में थी तो अचानक ही उसके पेट में दर्द होने लगा। पेट में हो रहे दर्द के कारण वो खुद में ही बड़बड़ाने लगी.......

मिशा "कल मैंने छोले-भटूरे खाएं थें, शायद इसीलिए दर्द हो रहा है। स्कूल से घर जाते ही मैं दवाई ले लूंगी, तो दर्द ठीक हो जाएगा।"

जूही " (मिशा की सहेली) क्या हुआ मिशा, अकेले में क्या बड़बड़ाए जा रही है........"मिशा " कुछ नहीं यार, कल मैंने छोले-भटूरे खाएं थें तो मेरे पेट में काफ़ी दर्द हो रहा है।

जूही " (चिंता करते हुए) ज्यादा दर्द है तो छुट्टी लेकर घर चली जा......."

मिशा " नहीं यार, अब तो दो लेक्चर ही रह गए हैं और तब तक तो मैं दर्द बर्दाश्त कर ही लूंगी।"

जूही और मिशा आपस में बातें कर रही होती हैं कि उनका हिंदी का लेक्चर लग जाता है और उनकी हिंदी की अध्यापिका मिसेज नमिता उनकी कक्षा में आ जाती हैं। सारे बच्चे उनका अभिवादन करने के लिए अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं कि तभी कुछ लड़के जोर-जोर से हंसने लगते हैं। लड़कों को इस तरह हंसते देखकर मिसेज नमिता उनसे गुस्से में कहती है.....

मिसेज नमिता " ये क्या बदतमीजी है, आप सब इस तरह से क्यूं हंस रहे हैं......"

मिसेज नमिता की गुस्से वाली रौबदार आवाज़ सुनकर सभी लड़के चुप हो जाते हैं, तभी मिसेज नमिता उनसे फिर से पूछती है......

मिसेज नमिता " मैंने आप सबसे कुछ पूछा है कि इस तरह क्यूं हंस रहे थे....... जल्दी जवाब दीजिए, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

लड़कों की तो अब कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं होती, पर उनकी ही कक्षा की एक लड़की पूजा मिसेज नमिता से कहती है.......

पूजा " मैम वो मिशा....."

मिसेज नमिता " क्या मिशा...... पूरी बात बताओ।"

पूजा के मुंह से अपना नाम सुनकर अब तो मिशा भी हैरानी से पूजा की तरफ़ देखने लगती है। पूजा अपनी बात को पूरा करते हुए कहती है......

पूजा " मैम मिशा की स्कर्ट पर खून लगा हुआ है।"

ये सुनकर बाकी बच्चे भी मिशा की स्कर्ट की तरफ़ देखने लग जाते हैं। उसकी स्कर्ट पर खून का दाग देखकर लड़के अपने मुंह में हंसी दबाने की कोशिश करने लगते हैं। इस सबसे मिशा का चेहरा बिल्कुल सफेद पड़ जाता है, वो जूही की तरफ़ देखने लगती है और वो भी उसकी स्कर्ट पर दाग देखकर अपना सिर हां में हिला देती है। जूही का जवाब पाकर मिशा धड़ाम से अपनी सीट पर बैठ जाती है। अपनी बेइज्जती होती देख, उसका चेहरा लाल हो जाता है और उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। मिसेज नमिता पूरी बात समझ जाती है तो वो मिशा से कहती है......

मिसेज नमिता " मिशा बेटा तुम मेरे साथ चलो और रोना बंद करो।"

मिशा " (रोते हुए) नहीं मैम, मैं कहीं नहीं जाऊंगी, सब मेरे ऊपर हंसेंगे।"

मिसेज नमिता " कोई नहीं हंसेगा बेटा, मैं हूं ना तुम्हारे साथ।"

जूही भी मिशा के कंधे पर हाथ रखकर उसे मिसेज नमिता के साथ जाने का इशारा करती है। मिशा अपना सिर नीचे झुकाए ही, मिसेज नमिता के साथ चली जाती है। उनके जाने के बाद एक बार फिर लड़के जोर-जोर से हंसने लगते हैं और लड़कियां भी आपस में बात करके मिशा के बारे में तरह-तरह की बातें करने लगती हैं।

मिसेज नमिता मिशा को अपने साथ वाॅशरुम में ले जाती हैं। मिशा रोते हुए उनसे पूछती है......

मिशा " ये सब क्या है मैम, मेरे शरीर से ये खून क्यूं निकल रहा है और मेरे पेट में भी बहुत दर्द हो रहा है।"

मिसेज नमिता " (उसके सिर पर हाथ फेरते हुए) घबराओ मत बेटा, ये एक साधारण बात है। तुम्हें याद है ना कि हमारे स्कूल में कुछ दिन पहले एक सेमिनार हुआ था, मासिक धर्म को लेकर......"

मिशा " जी मैम मुझे याद है।"

मिसेज नमिता " तो बेटा ये वही है। तुम्हारा मासिक धर्म शुरू हो गया है और ये तो हर लड़की के साथ ही होता है, इसमें डरने की या शर्म करने की कोई बात नहीं है। अब जाओ जाकर ये पैड लगा लो और ये मेरी स्कार्फ रख लो, इसे अपनी कमर पर बांध लेना। इस स्कार्फ के रंगों में तुम्हारा ये दाग छुप जाएगा।"

मिसेज नमिता उसे पैड और अपना स्कार्फ दे देती है। मिशा उन्हें धन्यवाद कहकर वाॅशरुम में चली जाती है। कुछ देर बाद वो वापिस आती है तो मिसेज नमिता उसे खुद उसकी कक्षा में छोड़कर आती है और लड़कों को घूरते हुए गुस्से में कहती है......

मिसेज नमिता " खबरदार जो अब किसी ने भी मिशा को तंग किया या उसका मज़ाक बनाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

उनकी बात सुनकर सब चुपचाप बैठ जाते हैं और उसके बाद कोई कुछ नहीं बोलता। जैसे-तैसे करके मिशा आखिरी लेक्चर लगाती है। छुट्टी होते ही सभी लड़के फिर से उस पर हंसते हुए वहां से चले जाते हैं और लड़कियां भी उसको काफ़ी बातें सुनाती है। मिशा बेचारी चुपचाप अपना सिर झुकाए बैठी रहती है। सबके जाने के बाद जूही उससे कहती है.....

जूही " मिशा तू इन सबकी बातों पर ध्यान मत दे और शर्म तूझे नहीं, बल्कि इन्हें आनी चाहिए, जो उस दाग का मज़ाक उड़ा रहे हैं, जिसकी वजह से ये खुद इस दुनिया में आएं हैं।"

तभी दरवाज़े से एक लड़की की आवाज़ आती है, "जूही बिल्कुल सही कह रही है।" आवाज़ सुनकर दोनों दरवाजे की तरफ देखती हैं तो वहां मिशा की पड़ोस वाली लड़की रूही खड़ी होती है। रूही उनके पास आती है और मिशा से कहती है......

रूही" मिशा तू लोगों की बातों पर ध्यान मत दे और अपनी सेहत के बारे में सोच...... ये सब तो चलता ही रहता है। चल घर चलते हैं..... तेरे पेट में दर्द हो रहा होगा ना तो घर जाकर आंटी से कहकर पेट पर गर्म पानी से सेंक ले लेना, तुझे आराम मिलेगा।"

रूही मिशा को उठाती है और उसकी स्कर्ट पर बंधे स्कार्फ को ठीक से बांध देती है। फिर रूही, मिशा और जूही स्कूल से घर के लिए निकल जाते हैं। जैसे ही मिशा अपने घर पहुंचती है तो उसकी मम्मी की नज़र मिशा की कमर पर बंधे स्कार्फ पर पड़ती है तो वो मिशा से कहती हैं......

आरती जी " मिशा ये तूने कौन सा नया फैशन चलाया है, स्कर्ट के ऊपर स्कार्फ बांधने का......."

मिशा " (रोते हुए) मम्मी मेरा मासिक धर्म शुरू हो गया है और मेरी स्कर्ट खराब हो गई थी तो नमिता मैम ने मुझे ये स्कार्फ दे दी। मम्मी मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है...... रूही दीदी बोल रहे थे कि घर जाकर गर्म पानी से सेंक कर लेना, उससे कुछ राहत मिलेगी, तो प्लीज़ आप मुझे पानी गर्म करके दे दीजिए।"

आरती जी " ठीक है करती हूं। तू जाकर कपड़े बदल ले और इन्हें धो दे।"

मिशा " ठीक है मम्मी, पर उससे पहले मैं जाकर पानी पी लेती हूं।"

आरती जी " रूक मैं देती हूं। जब तक तेरे पीरियड्स ठीक नहीं हो जाते, तब तक ना तो तू रसोई में जा सकती है और ना ही मंदिर में...... तुझे रहना भी सबसे अलग ही होगा।"

मिशा " (हैरानी से) ये आप क्या कह रही हैं मां...... ये तो प्राकृतिक बदलाव है, जो हर लड़की में होता है तो फिर इतनी रोक-टोक क्यूं मां........"

आरती जी" ये सब बातें मुझे नहीं पता, बस जो समाज के बनाए हुए नियम हैं, मैं उनका ही पालन कर रही हूं और तुझे भी इन नियमों का पालन करना होगा। अब जा यहां से और जो बोला है, वो कर।

मिशा रोते हुए अपने कमरे में चली जाती है और अपने कपड़े बदलकर उन्हें धो देती है और बेड पर लेट कर रोने लग जाती है। उसकी मम्मी उसे गर्म पानी की बोतल देकर चली जाती है। वो कुछ देर के लिए भी उसके पास नहीं बैठती, जिससे मिशा को बहुत बुरा लगता है। कहां तो उसने सोचा था कि कुछ देर वो अपनी मम्मी की गोद में लेट जाएगी और कहां उसकी मम्मी ने उससे इस तरह व्यवहार किया।

दर्द के कारण मिशा पीरियड्स रहने तक स्कूल नहीं जा पाती और घर पर ही रहती है। लोगों का पीरियड्स के प्रति इस तरह का व्यवहार देखकर, वो मन ही मन इस बारे में बदलाव लाने के बारे में सोचती है। चार दिन के बाद जब वो स्कूल जाती है तो एक बार फिर उसकी कक्षा वाले उसका मज़ाक उड़ाते हैं, पर वो किसी की तरफ़ ध्यान नहीं देती और अपनी पढ़ाई में लग जाती है।

ऐसे ही समय बीतता जाता है और उसकी नौवीं की वार्षिक परीक्षाएं आ जाती हैं। हर महीने वो दर्द सहकर और लोगों के व्यवहार को देखकर अपने इरादों को और मजबूत करती रहती है। जब उसकी वार्षिक परीक्षाओं का परिणाम आता है तो उसने हर बार की तरह स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया होता है। उनके स्कूल में वार्षिकोत्सव समारोह रखा जाता है, जिसमें सभी कक्षाओं में टाॅप में रहने वाले विद्यार्थियों को सम्मानित किया जाता है।

जब मिशा की बारी आती है तो वो अपना पुरस्कार लेने के बाद अपनी प्रिंसीपल मैम से कहती है.......

मिशा " मैम मैं कुछ कहना चाहती हूं।"

प्रिंसीपल मैम " हां बेटा बोलो।"

मिशा " मैम ऐसे नहीं.... मैं यहां बैठे सभी लोगों के सामने अपने मन की बात रखना चाहती हूं।"

प्रिंसीपल मैम " ठीक है बेटा जाओ (माइक की तरफ़ इशारा करते हुए)

मिशा माइक के पास जाती है और कहती है......

"मिशा" मेरा नाम मिशा है और आज मैं यहां अपने मन में काफ़ी दिनों से आ रही कुछ बातों के बारे में चर्चा करना चाहती हूं।

सभी सवालिया नज़रों के साथ मिशा को देखने लगते हैं। आरती जी को भी कुछ समझ में नहीं आता कि आखिर मिशा किस बारे में बात करना चाहती है। मिशा एक बार सबकी तरफ़ देखने के बाद आगे बोलना शुरू करती है.......आप सब सोच रहे होंगे कि आखिर मैं किस बारे में बात करना चाहती हूं तो मैं आज यहां लड़कियों में आने वाले सबसे बड़े प्राकृतिक बदलाव यानी कि मासिक धर्म के बारे में बात करना चाहती हूं।"

मासिक धर्म का नाम सुनते ही वहां बैठे सब लोग मिशा के बारे में तरह-तरह की बातें करने लग जाते हैं। आरती जी भी उसे गुस्से से घूरने लग जाती हैं, पर वो किसी की परवाह नहीं करती और आगे बोलती है......

मिशा " मैं जानती हूं कि आप सब सोच रहे होंगे कि कैसी बेशर्म लड़की है, जो इस बारे में बात करना चाहती है, पर मैं आप सबसे पूछना चाहती हूं कि आखिर इस बारे में बात करने में दिक्कत क्या है, जबकि ये बदलाव तो हर एक लड़की के जीवन की सच्चाई है...... अगर ये ना हो तो ये समाज कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता, फिर क्यूं इसको लेकर लोग ऐसी-ऐसी बातें करते हैं और लड़कियों का मज़ाक उड़ाते हैं....... मुझे अच्छे से याद है कि जब मुझे पहली बार मासिक धर्म शुरू हुए थे तो उस समय मैं स्कूल में थी और मेरे कपड़े खराब हो गए थे......उस बात के लिए ना केवल लड़कों ने, बल्कि लड़कियों ने भी मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया था, जिससे मुझे बहुत दुख हुआ। मुझे तो मेरी खुद की मां तक ने भी नहीं संभाला और फरमान सुना दिया कि रसोई में नहीं जाना, मंदिर में नहीं जाना, किसी चीज़ को नहीं छूना और सबसे अलग सोना है।"

इतना बोलते-बोलते मिशा की आंखों से आंसू बहने लग जाते हैं और वो कुछ देर के लिए चुप हो जाती है। तभी मिसेज नमिता वहां आती हैं और उसे आगे बोलने के लिए हिम्मत देती है। फिर मिशा आगे बोलना शुरू करती है.......

मिशा " उस समय भी मुझे नमिता मैम, रूही दीदी और मेरी बेस्ट फ्रेंड जूही ने ही संभाला था और इसके लिए मैं इनकी हमेशा आभारी रहूंगी। अब मैं यहां बैठे सभी लड़कों, आदमियों, लड़कियों और उन औरतों से पूछना चाहती हूं, जो इसको एक मज़ाक का पात्र बनाते हैं। वो सब मुझे ये बताएं कि क्या आप सब इस दाग के बिना ही इस दुनिया में आ गए......क्या आपकी मांओं को ये दाग नहीं लगते थे......क्या उन्हें मासिक धर्म से नहीं गुजरना पड़ता था....... अगर आपको इस दाग से इतनी ही दिक्कत है ना तो अपने जीवन में ऐसी ही लड़कियों को लेकर आना, जिन्हें ये दाग न लगते हो...... फिर देखती हूं कि कैसे आपके वंश आगे बढ़ते हैं।

ये बात सुनकर लोगों की नज़रें शर्म से नीचे झुक जाती है। मिशा उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहती है.......

मिशा " काश कि मेरी इन बातों का असर आप सब पर हमेशा के लिए हो जाए और लड़कियों का जीवन आसान हो जाए। अरे जब एक लड़की को मासिक धर्म होते हैं ना तो उसे किस शारीरिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है, इसका तो आप लड़के अंदाजा भी नहीं लगा सकते और ये लड़कियां जिन्हें खुद इस बात का पता है, वो भी दूसरी लड़कियों को मानसिक पीड़ा देने से पीछे नहीं हटतीं.......जब चार से सात दिन तक शरीर से लगातार खून निकलता है ना तो इतना दर्द और इतनी दिक्कतें होती हैं कि लगता है कि इससे अच्छा है कि एक बार में ही जान निकल जाए और ऐसा भी नहीं है कि ये दर्द जिंदगी में सिर्फ़ एक बार ही सहना पड़े...... ये दर्द तो एक लड़की को तबसे सहन करना शुरू हो जाता है, जब उसका मासिक चक्र शुरू हो जाता है...... उसके बाद हर महीने उसे इसी दर्द से गुजरना पड़ता है और वो भी सिर्फ़ कुछ समय के लिए नहीं, बल्कि अपने जीवन के 45-50 साल तक की जिंदगी का हर महीना उन्हें इसी दर्द में गुजराना पड़ता है। एक लड़की फिर भी खुशी-खुशी इतना दर्द सहती है, ताकि इस समाज को आगे बढ़ाने में कोई दिक्कत न हो, पर जब वही समाज उसे मज़ाक का पात्र बनाता है तो वो टूट जाती है।"

इसके बाद मिशा अपनी मां की तरफ़ देखती है और उनसे कहती है......

मिशा " मां आप तो मेरी अपनी है ना, फिर आपके दिल ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने की इज़ाजत आपको कैसे दे दी......माना कि आपके समय में आप सबके साथ ऐसा ही व्यवहार हुआ है और मां, फिर तो आप अच्छे से समझ ही सकती हैं ना कि उस समय कितना दुख होता है, तो फिर आपने बदलाव लाने की कोशिश क्यूं नहीं की...... क्यूं मेरे साथ भी वैसा ही व्यवहार किया, जैसा कि आपके साथ हुआ था......उस दिन मैं इतनी उम्मीद के साथ घर आई थी कि आप मुझे खुद से बिल्कुल भी दूर नहीं करेंगी, पर आपने क्या किया मां........

मिशा की बात सुनकर आरती जी को अपने समय की याद आ जाती है, जब उनका मासिक चक्र शुरू हुआ था और उनकी मां और दादी ने उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया था और उनको कितना दुख हुआ था। आरती जी की आंखों से आंसू आ जाते हैं और वो भागती हुई, स्टेज पर जाती है और मिशा से कहती है......"

आरती जी " बेटा हो सके तो मुझे माफ़ कर देना......जब तुझे मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी तो मैंने तुझे अकेला छोड़ दिया और तुझे भी उसी दर्द में धकेल दिया, जिससे कभी मैं खुद गुज़री थी, पर मैं तुझसे वादा करती हूं कि अबसे हर महीने मैं तेरा पूरा ध्यान रखूंगी।"

मिशा अपनी मां के गले लग जाती है और कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद वो उनसे अलग होती है और सभी से कहती है......

"मिशा मैं आशा करती हूं कि आप सब भी अबसे लड़कियों का मज़ाक उड़ाना बंद करके उन्हें मानसिक पीड़ा देना बंद करेंगे। आप सब उनकी शारीरिक पीड़ा तो दूर नहीं कर सकते, पर कम से कम उनकी मानसिक पीड़ा तो दूर कर ही सकते हैं ना...... आप सब लड़कियों पर जो रोक-टोक लगाते हैं कि रसोई में नहीं जाना, मंदिर में नहीं जाना, सबसे अलग रहना है...... ये सब बंद कर दीजिए, क्यूंकि ये एक प्राकृतिक बदलाव है ना कि एक छूत की बीमारी और मंदिर जाने से क्या हो जाएगा...... जबकि इस संसार की जननी खुद एक औरत है..... इसलिए इन अंधविश्वासों को छोड़कर अपनी बहू-बेटियों का इस समय पर साथ देकर, उनकी हिम्मत को बढ़ाइए।"

इसके बाद मिशा चुप हो जाती है और सभी लोग खड़े होकर जोर-जोर से तालियां बजाने लगते हैं। मिशा ये सोचकर बहुत खुश होती है कि शायद वो ज्यादा न सही, पर कुछ लोगों की सोच बदलने में तो कामयाब हो ही गई।



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