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Kumar Vikrant

Abstract

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Kumar Vikrant

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लट्ठधारी टार्ज़न

लट्ठधारी टार्ज़न

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टार्ज़न का आतंक 

एक हफ्ते से पूरे गुलफाम नगर में हा हा कार मचा हुआ है कि एक लंबा तगड़ा, नंग धडंग आदमी जो चीते की खाल का लंगोट पहने है, पूरे शहर में एक तगड़ा लट्ठ लिए घूम रहा है। वो रात के समय अचानक कहीं से प्रकट होता है और जो भी मिलता है उसपर तसल्ली से लट्ठ बरसा कर कूदता-फांदता गायब हो जाता है। वो सुपर हीरो टार्ज़न के समान चीते की खाल का लंगोट पहने घूम रहा है इसलिए लोगो और मिडिया में उसका नाम लट्ठधारी टार्ज़न के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।

उसका शिकार बने ज्यादातर लोग सड़क छाप आवारा थे और पुलिस प्रशासन की निगाह में बदमाश थे, आज ऐसे पचास से ज्यादा लोग टार्ज़न के लट्ठ से पिटने के बाद अस्पतालों में अपनी टूटी हड्डियों का ईलाज करवा रहे थे। इतने लोगो के घायल होने के बाद प्रशासन ने लट्ट धारी टार्ज़न की गिरफ्तारी पर आनन-फानन में पाँच लाख का ईनाम रख दिया। ईनाम घोषित होने से लट्ठधारी टार्ज़न कुछ दिन के लिए गायब हो गया।

दारोगा की चाल

आजकल सस्पेंडेड दारोगा लक्कड़ सिंह की बेकारी के दिन थे ऐसे में पुलिस लाइन के अपने छोटे से क्वार्टर में पड़े-पड़े उसे लट्ठधारी टार्ज़न के पकड़वाने के लिए घोषित इनाम को जीतने का ख्याल आया। उसने तत्काल अपने खबरी तलब किये और उन्हें धमका कर कहा, "मुफ्तखोरों कल शाम तक मुझे लट्ठधारी टार्ज़न का सुराग चाहिए नहीं तो तुम्हे पाँच-पाँच साल के लिए जेल भिजवा दूँगा।"

खबरी गिरते-पड़ते भागे तभी समाज सेवक दिलदार सिंह अपनी मूछों को ताव देता हुआ दारोगा लक्कड़ सिंह के क्वार्टर में दाखिल हुआ और बोला, "क्यों दारोगा जी आजकल तो मस्ती ले रहे हो क्वार्टर में लेट कर?"

"दिलदार सिंह मस्ती नहीं फाका मस्ती हो रही है........" लक्कड़ सिंह तड़फ कर बोला।

"कुछ सेवा हो तो बताओ......बिना मतलब तो तुम कुत्ता भी अपने नजदीक न फटकने दो; बोलो क्यों बुलवाया?" दिलदार सिंह फिर से अपनी मूछों को ताव देता हुआ बोला।

"ज्यादा ताव मत दो मूछों को........कल लट्ठधारी टार्ज़न को पकड़ना है......" लक्कड़ सिंह बोला।

"क्यों दारोगा जी सस्पेंड होकर पेट नहीं भरा जो अब लट्ठधारी टार्ज़न से पिटने का इरादा है......." दिलदार सिंह हँसकर बोला।

"ज्यादा न हँस दिलदार सिंह; कल तू भी मेरे साथ रहकर लट्ठधारी टार्ज़न को पकड़ेगा और उसे सरकार को सोपकर इनाम मेरे हाथ पर रखेगा।" लक्कड़ सिंह बोला।

"वाह दारोगा जी वाह हम तो हमेशा तुम्हारे साथ है लेकिन मुझे इस सबसे क्या मिलेगा?"

"पचास हजार।"

"बहुत कम है......"

"बकवास नहीं, चाहिए तो बोल; नहीं तो तेरे जैसे हजार समाज सेवक आते है यहाँ।"

"ठीक है......ठीक है; बोलो कहाँ चलना है लट्ठधारी टार्ज़न को पकड़ने?"

"अभी निकल; कल तुझे फोन करके बुलाता हूँ।"

दिलरुबा चौक में दंगल 

दारोगा लक्कड़ सिंह और दिलदार सिंह अपने दस खबरियों के साथ दिलरुबा चौक से लगे पार्क में घूमने आये जोड़ो के साथ छेड़खानी करते घूम रहे थे। बहुत कोशिश करने के बाद भी जब लट्ठधारी टार्ज़न का कोई सुराग न लग सका तो दारोगा लक्कड़ सिंह ने रोज दिलरुबा चौक से लगे पार्क में आकर लड़कियों, शादीशुदा जोड़ो से छेड़खानी शुरू कर दी। उसे भरोसा था कि उसकी ये हरकत लट्ठधारी टार्ज़न को उसके बिल से निकाल लाएगी।

रात १० बजे तक कुछ न हुआ तभी दिलदार सिंह ने एक शादीशुदा जोड़े के साथ बदतमीजी शुरू कर दी और अजीब आवाजे निकालते हुए लट्ठधारी टार्ज़न आ धमका और वो लट्ठ लेकर दिलदार सिंह पर टूट पड़ा।

तभी दारोगा लक्कड़ सिंह ने एक सिटी मारी और सारे खबरी और दरोगा अपने हाथो में डंडे लेकर लट्ट धारी टार्ज़न पर टूट पड़े। लेकिन लट्ठधारी टार्ज़न उनकी उम्मीद से ज्यादा फुर्तीला और मजबूत निकला उसने उन ११ डंडा धारियों से जमकर मुकाबला किया और दो मिनट में उसने सबको निहत्ते कर उनके हाथ पैर तोड़ डाले।

"मर गया बे......अबे जाल डालो इसपर, नहीं तो आज नहीं बचने वाले हम लोग....." दारोगा लक्कड़ सिंह चिल्लाया।

उसकी आवाज सुनकर जाल फेंकने वालो ने लट्ठधारी टार्ज़न पर जाल फेंका, जाल बहुत जबरदस्त था, एक सेकेंड में लट्ठधारी टार्ज़न जाल में लिपटा जमीन पर पड़ा था।

"पकड़ा गया.......?" दारोगा लक्कड़ सिंह जमीन से उठते हुए बोला।

"हाँ दरोगा जी पकड़ा गया......" एक खबरी अपनी चोट को सहलाते हुए बोला।

जाल में जकड़ा व्यक्ति विदेशी गोरा था, कम से काम साढ़े छह फ़ीट लंबा और तगड़ा था।

"अबे ये तो गोरा विदेशी है कहीं ये असली टार्ज़न तो नहीं है......? लक्कड़ सिंह ने जाल में जकड़े उस विदेशी गोरे को देखते हुए कहा।

"दिमाग चल गया है तुम्हारा; असली टार्ज़न कोई नहीं है वो तो बस कॉमिक्स का सुपर हीरो है; लेकिन ये है कौन, और यहाँ क्या कर रहा है?" दिलदार अपनी चोटो को सहलाते हुए बोला।

"होगा कोई, फ़िलहाल तो पाँच लाख का चेक है......चलो बे उठा लो इसे और ले चलो पुलिस चौकी पर......." लक्कड़ सिंह कराहते हुए बोला।

दो खबरी डरते-डरते जाल की तरफ बढे तभी लट्ठधारी टार्ज़न के मुँह से एक भयानक आवाज निकली और उसके हाथ में एक बड़ा सा छुरा चमका और उसने एक झटके में मजबूत नायलोन की रस्सी से बना जाल काट डाला और उछल कर खड़ा हो गया और जमीन पर पड़ा अपना लट्ठ उठा लिया।

उसे उठता देख दारोगा लक्कड़ सिंह और उसके साथियों ने अपनी अवैध बंदूके निकाल ली, पार्क की भीड़ तो पहले ही भाग चुकी थी।

पहली गोली दरोगा ने चलाई लेकिन लट्ठधारी टार्ज़न ने गोली से बचते हुए एक लट्ठ उसके हाथ पर मारा। दारोगा दर्द से चिल्लाया और उसकी बंदूक जमीन पर गिर गई। यही हस्र दरोगा के साथियों और दिलदार सिंह का हुआ, अब लट्ट धारी टार्ज़न उन सबको तसल्ली से दौड़ा-दौड़ा कर पीट रहा था। जब वो सब धरासाई हो गए तो लट्ठधारी टार्ज़न दिलरुबा चौक की तरफ भाग गया।

फिल्मी चक्कर

"देखो आज पूरे हिंदुस्तान के अखबार लट्ठधारी टार्ज़न के कारनामे से भरा है, दरोगा लक्कड़ सिंह और उसकी टीम के प्लान और लट्ठधारी टार्ज़न के द्वारा उनकी पिटाई की खबर मिडिया खूब नमक-मिर्च लगा कर टीवी पर चला रहा है।" फिल्म डायरेक्टर लीला डागा अपनी फिल्म, 'टार्ज़न से टक्कर,' के सितारों जूली और नकुल की और देखते हुए बोली।

"तो अपनी फिल्म, 'टार्ज़न से टक्कर,' की रिलीज की डेट डिक्लेयर कर दीजिए......" जूली हँस कर बोली।

"एक हफ्ते बाद प्रीमियर रखते है......." लीला उत्साह से बोली।

"लेकिन ये लट्ठधारी टार्ज़न कहाँ से आ टपका?" नकुल ने आश्चर्य से पूछा।

"राम जाने, लेकिन जो भी है उसने शहर के छिछोरो और बदमाशों की पिटाई अच्छी की है।" लीला हँसते हुए बोली। वो उन्हें क्यों बताती कि लट्ठधारी टार्ज़न उसके ही दिमाग की प्लान थी जिसे उसने अमेरिकन पहलवान सैमसन की मदद से पूरा किया था। उसकी फिल्म की पब्लिसिटी हुई और बेरोजगार अमेरिकन पहलवान सैमसन की कुछ कमाई हो गई।

एक हफ्ते बाद फिल्म, 'टार्ज़न से टक्कर,' को जबरदस्त ओपनिंग मिली। इधर फिल्म की ओपनिंग की शानदार पार्टी हुई और उधर दरोगा लक्कड़ सिंह और उसके साथी गुंडे बदमाशों के बीच लेटे अपनी टूटी हड्डियों का इलाज करा रहे थे। दूर अमेरिका में पहलवान सैमसन फिल्म, 'टार्ज़न से टक्कर,' के प्रीमियर को सैम्पेन पीकर मना रहा था।


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