Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

NARINDER SHUKLA

Tragedy

5.0  

NARINDER SHUKLA

Tragedy

अवलंब

अवलंब

3 mins
703


"तू आने दे ललूआ को ... सारी बात बताउंगी।" एक टेढ़ी सी लकड़ी के सहारे चलती हुई बुढ़िया ने बहू से कहा।

"हां हां देख लूंगी। काम तो करती नहीं ... उपर से चाहिये साबूदाने की खीर।" रामदेयी बड़बड़ाती हुई रसोई घर में घुस गई।

आज बुढ़िया ने कुछ नहीं खाया। केवल रोती रही। लालमणि आज होता तो क्या बहू ऐसा बोलने की हिम्मत कर सकती थी। लालमणि रूपया कमाने शहर गया है। पति के मरने के बाद उसने जैसे - तैसे लोगों की गालियाँ सुनकर, घरों में बरतन मांजकर ललूआ को पढ़ाया लिखाया। आज ललूआ बड़ा अफ़सर है। बीसीयों लोग उसके नीचे काम करते हैं। बचपन में, झोला हाथ में लिये कैसे कहता था - "माँ... माँ मैं दिल्ली जा रहा हूं। तेले लिये खूब पैसा लाउंदा।अच्छी साली भी लाउंदा...माँ। दिनेसवा की माँ की तरह सितारों वाली।" और वह उसे गोद में ले लेती थी। मगर, वह फिर रोने लगी। इतने साल हो गये दिल्ली गये हुये। एक चिट्ठी को छोड़कर , कोई खबर ली। ... शायद, काम में फँस गया होगा। लोग कहते हैं कि अफसरी में बड़ा काम करना पड़ता है। ऐसा सोचती हुई वह खाट पर लेट गई। पर, नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। दीये की रौशनी में कोई काला सा साया उभर आया था। वह उठी और धीरे-धीरे आंगन की ओर बढ़ने लगी।

"कौन है ?"

" मैं हूं ललूआ। सीधा स्टेशन से आया हूं माँ। "

वह किसी तरह ललुआ तक पहुंची और उससे लिपटकर रोने लगी - बेटा। शेष शब्द हिचकियों में तब्दील हो गये । पुत्र स्नेह की उन्मादिनी माँ अपने लाल को अनवरत चूमती जा रही थी। वह केवल औल केवल अपने ललूआ को देखे जा रही थी। आँसुओं का सैलाब सारे गिले - शिकवे बहा कर ले गया।

" चल आ। आज तेरे लिये मैंने अपने हाथों से अरबी की सब्ज़ी बनाई है। आज तुझे अपने हाथों से खाना खिलाउंगी। वह उसका हाथ पकड़ रसोई की ओर ले जाने लगी।"

"मैं स्टेशन से खा - पीकर आया हूं माँ। तू चिंता मत कर। रात बहुत हो गई है। अब सो जा। वह हाथ छुड़ा कर अपने कमरे की ओर बढ़ गया।"

सुबह, बेटा - बहू को हाथ में सूटकेस लिये अपनी ओर आते देखकर वह हतप्रभ रह गई।

"हाय बेटा ! इतनी सुबह कहां जा रहा है ? "

"कुछ नहीं माँ। मैं वापिस शहर जा रहा हूं, एक मिनट की फुर्सत नहीं है। दफ्तर की सारी जिम्मेदारी तेरे लाल पर ही है।" फिर , कुछ सोचकर वह बोला "तुझे तो पता ही है माँ, कि बाहर का खाना मुझे हज़म नहीं होता। इसलिये तेरी बहू को भी साथ ले जा रहा हूं। वह माँ के पैरों को हाथ लगाते हुये बोला। "

"जुग . . जुग जियो मेरे लाल। पर बेटा...।" वह आँसुओं को रोक न सकी। आंचल का छोर मुंह में खोंस लिया।

"तू चिंता न कर माँ। यह मेरा फोन नंबर रख ले । जब कोई समस्या हो , तुरंत फोन कर लेना। मैं फ़ौरन चला आउंगा। और, यह भी रख । 500 रूपये का एक नोट व कागज़ का एक टुकड़ा ज़बरदस्ती माँ के हाथ में थमाकर वह चल पड़ा। बहू भी उसके पीछे हो ली।

अनपढ़, ना समझ . . गुमसुम माँ अपने लाल को दूर जाते हुये तब तक देखती रही जब तक कि वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया।

सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करने का अवलंब अब भी उसकी मुट्ठी में बंद था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy