NARINDER SHUKLA

Comedy

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NARINDER SHUKLA

Comedy

बैकुंठ हेयर ड्रेसेज

बैकुंठ हेयर ड्रेसेज

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एक बार मुझे एक सरकारी कार्य के लिये मेरठ जाना पड़ा। मेरठ बस स्टैंड पर उतरते ही मैंने घड़ी की ओर देखा। आठ बजे थे। आफिस में मीटिंग दस बजे की थी। बस स्टैंड पर लगे सरकारी नल से चेहरा धोते हुये लगा कि दाढ़ी उग आई है। सोचा , क्यों न सामने की दुकान से दाढ़ी बनवा ली जाये। टाइम का टाइम पास हो जायेगा और चेहरे पर भी ज़रा रौनक आ जायेगी। कई दुकानों से गुजरता हुआ सहसा मैं एक दुकान के साइन बोर्ड से बहुत प्रभावित हुआ। लिखा था -'बैकुंठ हेयर ड्रेसेज़'। दिवारों पर चिपके आजकल के फिल्मी देवता व अप्सराओं के चित्र दिल खोल कर स्वागत के लिये तैयार खड़े थे। पूरा इंद्र दरबार सजा था। मैं दुकान के भीतर पहुंचा। सामने लगभग 45-50 वर्श का एक अधेड़ गत्ते से हवा ले रहा था।

मैंने पूछा - ‘क्या बैकुंठ हेयर ड्रेसेज यही है ?'

 वह गला खंखारते बड़े अदब से बोला -'आइये हुज़ूर , यही है आपका बैंकुठ धाम।‘

मैने चैंकते हुये कहा - ‘ क्या मतलब।'

वह बोला - ‘अजी हुज़ूर , मतलब को मारो गोली। मैं ही हॅूं आपका बैकुंठ। सब लोग प्यार से मुझे बैकुंठवा कहते हैं।'वह हाथ जोड़ कर बोला - ‘बताइये क्या सेवा करुं। ‘

उसके सविनय निवेदन से मैं अभिभूत हुआ, लगा कि सचमुच स्वर्ग आ गया हूं। मुझे पसीना आ रहा था। सामने लगी कुर्सी पर बैठते हुये मैंने कहा ‘भई , ज़रा ए़़ सी तो चला दो। गर्मी के मारे दम निकला जा रहा है।

बैंकुठ मेरे चेहरे से लगातार चूते हुये पसीने से बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ। कहने लगा - ‘हुज़ूर , यहां बिजली नहीं है। अब क्या बताउं। ये बिजली वाले भी बहुत परेशान करते हैं। 6 - 6 घंटे का कटट रहता है। कंपलेंट करने पर अफसर कहते हैं कि तुम झूठ बोल रहे हो। हमारा शहर ‘स्मार्ट शहर‘ की कैटेगरी में जाने के लिये तैयार खड़ा है। ऐसे में बिजली कैसे जा सकती है ? हम चैबिसो घंटे बिजली भेजते हैं। हां अगर रास्ते में कोई लपक लेता है तो हम क्या करें। यह फौजदारी मामला है। हम कुछ नहीं कर सकते। खैर छोड़ो, हम ठहरे सीधे - सादे आदमी। ज्यादा कानूनी पचड़े में पड़ते नहीं। हम तो सौ बातों की एक बात जानते हैं हुज़ूर कि जब बिजली को आना ही नहीं हैं तो क्यों हाथी पालें। इसलिये न तो हमने बिजली का कनैक्शन लिया और न ही ‘ए़़ सी़‘ लगवाया।  हंसता है। हमारा काम तो दिन का ही रहता है। सांझ ढ़लते ही हम अपनी राधा के पास चल देते हैं।‘

 मैंने कहा - ‘ओहफ ओे, कहां फंस गया। तुम बातें बहुत करते हो।‘ बैकुंठ -'अह़ ह़ ह़ हंसता हुआ - यही तो हमारा पेशा है हुज़ूर। अच्छा आप कहते हैं तो नहीं बोलते। अच्छा बताइये क्या खिदमत करूं।‘

मैने कहा - ‘जल्दी से शेव कर दो। आफिस जाना है।‘

बैकुंठ - ‘अभी लो हुज़ूर। ऐसी हज़ामत बनाउंगा कि सीधे बैकुंठ पहुंच जाओगे।‘

 मैं चैंका - ‘क्या मतलब ?‘

बैकुंठ मेरे गले के चारों ओर एक गंदा सा तौलिया लपेटते हुये बोला -'मतलब ई कि हुज़ूर , हमारे हाथों से शेव कराने के बाद धरती की अप्सरायें आपके कातिल रूप पर लटटू हो जायेंगी। ‘ 

‘छी छी । यह कौन सा साबुन है ? और यह तौलिया भी कितना गंदा है। बदबू के मारे नाक फटी जा रही है। मैंने गंदा तौलिया झटकते हुये कहा। ‘

बैकुंठ -‘मैं गांधी भक्त हूं हुज़ूर। स्वववलंबी भी हूं। केवल अपने हाथों पर विश्वास रखता हूं। बड़ा बेटा साबुन बनाना सीख रहा है। यह उसका ही बनाया हुआ साबुन है। हर जगह काम आता है। देखो कितना झाग दे रहा है।

‘ मैंने कहा - ‘ठीक है। ठीक है। जल्दी करो। आफिस जाना है।‘

 बैकुंठ उस्तरे को हथेली पर घुमा - फिरा कर तेज़ करता हुआ - ‘अभी गालों पर रंगत ला देते हैं।‘ शेव करने लगता है कि सहसा गाल कट जाता है।

‘उई उई, दर्द से चिल्लाते हुये मैंने कहा - ये क्या कर दिया ?‘

बैकुंठ - ‘गलती हो गई हुज़ूर। अब आप से क्या छिपाउं । कल इसी उस्तरे से मुन्नी ने पेंसिल छील ली थी। बहुत समझाता हॅू हुज़ूर । लेकिन क्या करूं आजकल के बच्चे तो ही ही हंसते हुये - मानते ही नहीं। लेकिन हुज़ूर , इसमें आपका भी तो फायदा है। मैं एक कटट के पच्चास पैसे छोड़ता हूं। जितने कटट लगेंगे उतने ही पच्चास पैसे आप एक ही झटके में हासिल कर लेंगे।  हुआ न फायदा। आम के आम गुठलियों के दाम। ही ही ही । हंसता है।‘

मैंने झल्लाते हुसे कहा - ‘तू अपना फायदा अपने पास ही रख। बस जल्दी से हाथ चला।‘ हाथ चलाते - चलाते फिर कटट लग जाता है। ‘उफ़ , सी सी । फिर काट डाला। मैं कराहने लगा।‘

 बैकुंठ पर मेरे कराहने का कोई असर नहीं हुआ। वह मुस्कराते हुये बोला - ‘मैं क्या हाथ चलाउंगा हुज़ूर। हाथ तो हमारे पिता जी चलाते थे। हज़ामत बनाते - बनाते तुरंत उस्तरा ग्राहक की गरदन पर रख देते थे।  मज़ाल है कि कोई बाल कटवाने से मना कर दे।‘ उसने अचानक उस्तरा मेरी गरदन पर रखते हुये कहा - ‘तो बाल कटवायेंगे न हुज़ूर।‘

मैंने डरते हुये कहा - ‘बाप रे बाप। दूर करो यह उस्तरा।‘ बैंकुंठ ने उस्तरा दूर करते हुये कहा - ‘तो मैं क्या कह रहा था हुज़ूर। अरे हां  तो कटवायेंगे न बाल हुज़ूर।‘

 मैंने बालों पर हाथ फेरते सहमे हुये कहा - ‘हां हां काफी बढ़ गये है। काट ही दो।‘ 

बैंकुंठ ने उपर अलमारी से एक मटमैला कपड़ा निकाला और मेरी गरदन पर बांधते हुये कहा - ‘अभी लो हुज़ूर।‘ ‘छी छी़ छी. हटाओ इस गंदे बदबूदार कपड़े को़ । 

 मैंने सिर झटकते हुये कहा।‘

 उसके आत्मस्वाभिमान को चोट लगी - ‘यह क्या कह रहे हैं आप ! यह कपड़ा देश का अभिमान है। देश की पहचान हैं। शत - प्रतिशत असली खादी है हुज़ूर। गांधी बाबा का असली चेला हूं । और कोई कपड़ा इस्तेमाल नहीं करता।‘ मुस्कराते हुये - ‘दरअसल हुज़ूर , यह बड़े कमाल का कपड़ा है। गरमी के दिनों में यह आइस का काम करता है।  यानि जितना गीला होगा , ठंडक उतनी ही बढ़ेगी। ही. ही. ही. हॅंसता है।

‘ देश का नाम सुनकर मैं कुछ शांत हुआ - ‘ठीक है। तुम बाल काटो।

‘ छोटी कैंची से बाल काटना आरम्भ करते हुये - ‘ऐसा कटट काटूंगा कि ये फिल्मी हीरो क्या कहते हैं वो सलमान - वलमान , शाहरूख - वाहरूख सब आपके सामने पानी भरते हुये नज़र आयेंगे।‘

मैं मंद - मंद मुस्कराया - ‘अच्छा  यह बताओ बैकुंठ,  ये दुकान कितनी पुरानी है ?‘

 वह बड़े गर्व से बोला -‘ दादा - परदादा के ज़माने की है हुज़ूर। हमारे दादा , श्री विष्णु बिहारी खानदानी हज़ामती थे। बड़े - बड़े राजा - महाराजा उन्हें अपनी हज़ामत के लिये विशेष रूप से बग्घी से बुलाते थे। बड़ा रोब था उनका। हवेली के सभी कर्मचारी उन्हें सलाम ठोंकते थे। लखनउ के नवाब ने दादा जी के काम से खुश होकर यह दुकान उन्हें उपहार स्वरूप दी थी। उस समय इस दुकान पर हज़ामत बनवाने वालों की एक लंबी कतार लगी रहती थी। कूपन सिस्टम लागू था। मेरे पिता, श्री हरिमिलाप और भी घाकड़ थे। दादा जी ने उन्हें खूब बादाम पिलाया था। फुल्ल टाइम पहलवानी करते थे। दादा जी के बाद उन्हें यह खानदानी बिज़नेस अपनाना पड़ा। रोब उनका भी काफी था। जो ग्राहक एक बार इस दुकान पर आ जाता था वह शेव से लकेर बालों और बालों से लेकर मालिश तक का काम करवाये बिना नहीं जाता था। फेशियल और मसाज़ तो अब चले हैं। पिता जी की इस मोहल्ले में इतनी धाक थी कि कोई चूं तक नहीं करता था। उस्तरा तो सदा हाथ में लिये रहते थे। उसके बाद मै। मेरी मां कहती थी कि मेरी चाल - ढ़ाल हूबहू मेरे पिता जी से मिलती है। मुझे बचपन से ही हज़ामत का शोक था। एक बार मैंने गुस्से में आकर , सोते हुये अपने पिता जी की हज़ामत कर दी थी। उस दिन मैं बहुत पिटा था। खैर , दुकान पर मैं पिताजी का हाथ बंटाता था। मरते - मरते पिताजी इस व्सवसाय के सारे दांव - पेंच मुझे सिखा गये।‘ उस्तरा हाथ में ले लेता है।

मैंने डरते- डरते कुछ सोचते हुये कहा - ‘देखो भाई बैकुंठ , मालिश भी कर ही दो। कई दिनों से कमर में दर्द है। लेकिन , पहले शीशा दिखा दो।‘

 बैकुंठ पतलून की पिछली जेब से शीशा निकाल कर देता है - ‘ये लो हुज़ूर। अपने लिये रखा है । आप भी देख लो। वैसे यहां शीशे की ज़रूरत नहीं पड़ती। यहां हर काम तसल्ली बख़्श किया जाता है।

‘ छोटे - बड़े बेढ़गे कटे बाल देखकर, मैं गुस्से से पागल हो उठा - ‘ये बाल काटे हैं या घास चराई है। कोई भी बाल बराबर नहीं है।‘

 बैकुंठ - ‘एकदम नया इस्टाइल है हुज़ूर ! हबीब भी मेरे ही इस्टाइल चुराता है। उस पर तो मैं केस करने वाला हूं। कल देखना , यही इस्टाइल फिल्मी एक्टरों में पापूलर हो जायेगा। अभी शैंपू कर देता हॅूं । बाल एकदम निखर जायेंगे।‘ गैंडा छाप शैंपू की पूरी बोतल बालों पर उड़ेल देता है।

 मैं रुआंसा हो उठा - ‘ये क्या कर दिये तुमने ?  जल्दी से इसे धोओ। शैंपू आंखों में आ रहा है।

‘ बैकुंठ कुछ सोचता हुआ - ‘ओफ़ हो ! अरे हुज़ूर , मैं तो यह बताना ही भूल गया कि पानी का बिल न जमा कराने के कारण पानी वाले पानी का मीटर काट गये हैं। ठहरो मैं साथ वाली दुकान से पानी लेकर आता हूं।‘

 मैंने लगभग चीखते हुये कहा - ‘रहने दो। मैं ऐसे ही चला जाउंगा। तुम फ़ौरन अपने पैसे बताओ ?‘।

 बैकुंठ - ‘जैसी आपकी मर्ज़ी , पर मैं तो कह रहा था ।

‘ कुछ नहीं । बस तुम पैसे बताओ । मेरी आखें शैंपू के झाग से जली जा रही थीं।

‘ बैकुंठ - ‘ठीक है। जब आपकी यही ज़िदद है तो बता देता हूं।  शेव के 50 रूपये , हेयर कटिंग के 100 , शैंपू के 50 रूपये , मालिश के 500 और कुल मिलाकर 1396 रूपये और 50 नये पैसे।‘

 मैं गुस्से से तिलमिला उठा - ‘क्या ! 1396 रूपये। क्या लूट मचा रखी है। होश में तो हो। कभी स्कूल का मुंह भी देखा है या नहीं !‘

बैंकुंठ - ‘ये तो हमारी तौहीन है हुज़ूर। पहली से दसवीं तक फस्र्ट आने में कोई कर तो लेता हमारा मुकाबला ! वो तो पिता जी की आक्सिमिक मौत के बाद अचानक मुझे यहां बैठना पड. गया। वरना, हम भी आज आपकी तरह ही सूट - बूट में होते।‘

 मुझे और गुस्सा आने लगा। मैं एक पल के लिये भी वहां रूक पाने में असमर्थ था - ‘अच्छा - अच्छा , जल्दी से हिसाब बता।‘

बैकुंठ - ‘शेव के 50 रूपये , हेयर कटिंग के 100 , शैंपू के 50 रूपये , मालिश के। 500 रूपये। आपको इस हालत में दुकान से बाहर जाते देखकर मेरे कम से कम 5 - 7 ग्राहक तो भागेंगे ही। इसलिये 100 रूपये प्रति ग्राहक के हिसाब से यह रकम भी आपको ही देनी होगी। कुल मिलाकर हुये 1400 रूपये। और हां , कटट तो मैं भूल गया। आपके गाल पर सात कटट भी लगे हैं। तो 50 पैसे प्रति कटट के हिसाब से 1400-3.50। कुल मिलाकर हुये 1396 रूपये और 50 नये पैसे। यहां ईमानदारी का सौदा होता है हुज़ूर। बेईमानी हमारे बाप - दादा ने नहीं की तो हम क्या करेंगे।‘

मैंने झुझंलाते हुये कहा - ‘पर , मालिश तो मैने करवाई नहीं।‘

‘पर आर्डर तो दिये थे न ! बैठिये अभी कर देता हूं। उसने सिर झटकते हुये कहा।‘

‘नहीं - नहीं , मुझे कुछ नहीं करवाना। ये लो अपने 1396 रूपये। मैंने उसे 1500 रूपये देते हुये कहा। बाकी का बैलेंस जल्दी दो।  हाय आखें जली जा रही हैं। ‘ 

‘छुटटे तो नहीं हैं फिर ले लीजियेगा।‘

मैंने झल्लाते हुये कहा - ‘फिर ! फिर यहां कौन मरने आयेगा।‘

 बैकुंठ - ‘फिर मैं यह समझूंगा कि बाकी के पैसे आपने मुझे मेरे काम से खुश होकर टिप्प स्वरूप दे दिये हैं। ही ही ही़ हंसता है।

 मेरे लिये यह सचमुच मेक - इन इंडिया था। स्थानीय सरकारी नल का पानी सूख गया था। मीटिंग खतम हो गई थी। लिहाज़ा मैं आम आदमी की तरह कराहता हुआ बस स्टैंड की ओर चल पड़ा।


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