NARINDER SHUKLA

Drama

5.0  

NARINDER SHUKLA

Drama

हाय रे विज्ञापन !

हाय रे विज्ञापन !

6 mins
373


मैं श्री कृष्ण का शुद्ध भक्त हूं। प्रतिदिन सुबह - सुबह मंदिर अवश्य जाता हूं। मंदिर जाने से दिल और दिमाग दोनों पवित्र हो जाते हैं। बीते दिन के पाप धुल जाते हैं। तन और मन पुनः ‘माया‘ का आलिंगन करने के लिये आतुर हो जाता है। आफिस जाकर ‘माल ‘ की तलाश में फाइलें दबाने को मन ललकता है। लेकिन, डाक बाबू के पेशे में माल कहां ! आयकर या उत्पाद शुल्क अधिकारी होता तो बात अलग थी। यहां तो महीने की पच्चास आते - आते चार-पाच हज़ार की उधारी हो जाती है। मेरा मंदिर जाने का मकसद दूसरा है। दरअसल, मंदिर के ठीक सामने राजकीय महिला कालेज़ है। वहां की हवा मेरी आंखों को अज़ब सी ठंडक पहचाती है। मैं सोते से जाग जाता हूं।

आज, जब मैं मंदिर जाने को हुआ तो देखा टिंकू चाकलेट खा रहा था। पांच - सात टाफियां पास पड़ी हैं।

मैंने कहा - ‘बेटा, टिंकू, इतनी टाफियां खाओगे तो दांत सड़ जायेंगे। ‘

वह झटपट बाथरुम से टूथपेस्ट ले आया - पापा, बैट लगा लो। नहीं सड़ेंगे।

मैं डपटा - क्यों नहीं सड़ेंगे।

रंग - बिरंगा टूथ पेस्ट दिखाते हए वह बोला - मैं यह टूथ पेस्ट करता हॅूं। टी . वी. वाला राजू भी यही टूथ पेस्ट से ब्रश करता है। एक बार में दो तीन चाकलेट खा लेने से भी उसके दांत मोतियों जैसे चमकते हैं। मैं तो दिन में दो बार ब्रश करता हूं। फिर मेरे दांत कैसे गिर सकते हैं ?

आठ बज रहे थे। कालेज़ खुलने को था। लिहाजा़, उसे बिना कुछ कहे मंदिर की ओर चल पड़ा। पर, वाह री किस्मत, आज इलैक्शन के चक्कर में कालेज़ बंद था। मुझे बैरंग घर लौटना पड़ा।

घर आते ही मैंने देखा कि श्रीमती जी खीरा, दूध, नारियल व चंदन आपस में मिलाकर पीस रही हैं। मैंने पूछा - माला, ये क्या कर रही हो ? ताज़ी सब्ज़ियां वैसे ही मंहगी हैं और तुम ?

तुम्हें मेरे हर काम में फिज़ूलखर्ची दिखाई देती है। श्रीमती जी ने मेरी बात काटते हये गुस्से में कहा।

मैंने बड़े प्यार से कहा - माला दरअसल, मेरा वह मतलब नहीं था। तुम मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही हो। चैनलों पर ‘बहस‘ देखते - देखते मैं अपनी ही कही बात से मुकरने में खिलाड़ी हो गया था।

मैं अच्छी तरह से जानती हूं आपका मतलब। वे एहसान  बोलीं - आपकी ही जेब बचा रही हूं। चेहरा साफ करने का लेन बना रही हूं। टी. वी. पर देखा नहीं। इन्हीं सब के मिक्स्चर से बनी फेयरनेस क्रीम लगाकर काली कलूटी कमला इतनी गोरी चिटटी हो गई कि काली कलूटी कहकर शादी से इंकार करने वाला राहुल भी अपने मां - बाप को छोड़कर, बिना दहेज़ के कमला को शादी करके ले जाता है।

मैंने माथा ठोंका - पर भागवान, तुम्हें तो अब मैं ब्याह के ले के ले आया हूं न।

वे तुनक कर बोलीं - हूं कभी ब्यूटी पार्लर तो ले के नहीं गये। दो पैसे तो खर्च नहीं किये मुझ पर। चले हैं ब्याह के लाने वाले। हूं । मोहल्ले में कमला, विमला, छाया आदि सभी के पति अपनी बीवीयों को सप्ताह में दो बार ब्यूटी पार्लर भेजते हैं। और एक आप हैं कि । आप नहीं चाहते कि मैं सुंदर दिखूं। वे रोने लगीं।

मैंने हथियार डाल दिये। लेकिन कामयाब पतियों की तरह शायराने अंदाज़ में कहा - प्रिया तुम वैसे ही ‘रवीना टंडन ‘ लगती हो। तुम्हें इन बनावटी चीज़ों की क्या आवश्यकता ?

सच्चाई छूप नहीं सकती बनावट के असूलों से।

खशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से।।

वे शांत हईं। मुस्करा कर कहा - मैं और सुंदर होकर मोहल्ले में होने वाले ‘ब्यूटी कांन्टेस्ट ‘ में ‘मिस मोहल्ला ‘ बनना चाहती हूं।

मैंने कोई और रास्ता न देख हवा में तीर फेंका - पर, यह क्रीम तो तुम बाज़ार से भी ले सकती हो।

वे बोलीं - बाज़ार में यही क्रीम 200 रुपये की है। मैं हार गया और चुपचाप हाथ पर रुपये रख दिये।

शाम को, पिंटू और ‘मिंटू‘ को मैथ की किताब लिये आपस में झगड़ता देखकर मैंने मिंटू से पूछा - क्यों रे, इतना शोर क्यों मचा रखा है ?

मिंटू बोला - पापा, पिंटू कहता है कि जायेगा। मैं कहता हूं कि नहीं जायेगा।

मेरी नज़र पिंटू की नोट - बुक पर पड़ी। जहां 10 अंक में से 12 अंक घटाये जा रहे थे। मैंने पिंटू के कान उमेठते हुये पूछा - क्यों रे, भला 10 में से कभी 12 गये हैं। स्कूल में यही सिखाया जाता है ?

पिंटू रोते हये बोला - पापा, स्कूल में तो एक सवाल कराके बाकि सवाल यह कह कर, घर से कर के लाने को कहा जाता है कि बाकि भी इसी तरह के हैं। न समझ में आये तो टयूशन में समझ लेना। यहां समय वेष्ट करने की जरुरत नहीं है।

मिंटू बोला - दरअसल पापा, हम ‘सम‘ नहीं, टी.वी पर आने वाली उस एड के बारे में बात कर रहे थे जिसमें बच्चे की ‘टी - शर्ट ‘ पर लगे सार्स के दाग को लेकर पति - पत्नी में झगड़ा हो जाता है।

मेरी आँखों के आगे वह दृश्य आ गया जब आधुनिक मांए जींस व ‘टी-शर्ट‘ पहने, ‘टी-शर्ट ‘ के दाग को धोने के लिये खुशी - खुशी ऐसे ‘वाशरुम‘ जाती हैं जैसे किसी सहेली के घर ‘किटटी - पार्टी‘ में ‘तंबोला‘ खेलने जा रही हो।

अपनी पड़ोसन, मिसेज़ वर्मा को पीठ पकड़कर कराहते हुये लाॅन में टहलते हुये देखकर मैंने पूछा - क्यों मिसेज़ वर्मा, आज क्या एक्सरराइज़ अधिक कर ली ?

मिसेज़ वर्मा हमारे मोहल्ले की ‘लेडी दारा सिंह‘ हैं। मोहल्ले में जब भी उठा-पटक होती है। इन्हें बड़े सम्मान से बुलाया जाता है।

मिसेज़ वर्मा ने कहा - नहीं भाई साहब। अब क्या बताउॅं ! उस मुए एडवरटाइज़मेंट के चक्कर में आकर घर की सारी चददरें, पर्दे, बैड -कवर व गददे धो डाले। हाय ! अब खड़ा भी नहीं हुआ जाता। सत्यानाश हो उसका। कहता था, इस वाशिंग पाउडर से धोबियों की छुटटी हो जायेगी। मुआ, एक बार और मिल जाये जो कसम खुदा की उसकी चटनी बना दूं। एक पल के लिये जोश में उनकी मुटिठयां तन गईं। लेकिन दूसरे ही पल वे फिर कराहने लगीं।

एक दिन, मेरे एक मित्र घर आये। वे मेरे साथ ही डाकघर में कर्लक थे। उनका भी मेरी ही तरह जीविका का एकमात्र सहारा तनख़्वाह ही था। उनकी परमात्मा से सदा यही शिकायत रहती कि भगवान ने उन्हें डाक -घर में ही नौकरी क्यों दी। जबकि वे मालदार विभाग में चपडा़सी बनने के लिये भी तैयार थे।

आज़ मित्र कार पर आये थे। मैं हैरान हुआ - भाई भूषण, ‘राखी बंपर‘ इस बार क्या तुम्हारे नाम लगा हैं ?

वे बड़ी शान से बोले - नहीं प्यारे। अलादीन का चिराग हाथ लग गया है। यह सब ‘के. बी. आई ‘ बेंक का कमाल है। कार, टी.वी. ए.सी. तथा मकान सब कुछ लोन पर मिल गया है।

मैंने स्थिती समझते हुये पूछा - पर, भूषण, इन सबका ब्याज़ भी तो देना पड़ेगा ?

वे रइसों की सी अदा में बोले - पहले साल तो कुछ देना नहीं है। फिर इज़ी सी 72 किस्तें कुल दस हज़ार की हैं।

मैंने कहा - लेकिन, तुम्हारी पगार तोे तीस हज़ार ही है। हर महीने की 25 आते - आते तुम हाथ पसारने लगते हो। किश्त कैसे दोगे ?

उन्हें मेरा प्रश्न पसंद नहीं आया। लेकिन, फिर कुछ सोचते हुये तनिक दार्शनिक अंदाज़ में कार में बैठते हुये बोले - सब हो जायेगा। तुम्हे चिंता करने की ज़रुरत नहीं है। और नहीं भी हुआ तो बैंक हंै ही। लोन ले लेंगे।

मैंने मन में कहा - भारत ‘न्यू इंडिया ‘ हो गया है। अब हम विज्ञापनों के सहारे चांद से तारे भी तोड़ कर ला सकते हैं। उभरते प्रेमियों का अब घबराने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। वे चांद पर हनीमून की तैयारी कर सकते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama