bebasi
bebasi
मुझे अपनी मां से मिलना है। शमशान घाट के गेट पर सात - आठ वर्ष की एक लड़की ने रोते हुए मुझसे कहा।
क्या हुआ बेटे ? मैंने घुटनों के बल बैठकर उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा।
मेरी मां मर रही है। मुझे मां से मिलना है। ये लोग मुझे अंदर नहीं जाने दे रहे। उसने वहां खड़े नगर - निगम के कर्मचारियों की ओर इशारा करते हुए कहा।
कहां है तुम्हारी मां। मैंने उसे गोद में उठा लिया।
वो सामने, प्लास्टिक के कपड़ों से ढकी हुई। सामने से दसवीं गठरी की ओर उंगली से इशारा करते हुए उसने कहा।
मैंने देखा। चारों ओर लाशें ही लाशें दिखाई दे रहीं थी। एक के बाद एक लाशें बड़ी तेज़ी से जलाई जा रहीं थी। मैंने अपने जीवन में एक साथ इतनी लाशें जलती हुई नहीं देखीं थी।
मेरी आंखों में आंसू आ गए। वह गोदी से उतर आई। मेरी उंगली पकड़ते हुए बोली - अंकल आप तो न्यूज़ वाले हैं। आप कहिये न इनसे। मुझे मेरी मां से मिला दें। मैं बेबस था। उसकी मां की लाश को आग लग चुकी थी।
बेटा, तुम्हारी मां भगवान के घर चली गई है। मैंने उसके आंसू पोंछते हुए कहा।
मैंने उसे फिर से गोद में उठा लिया - बेटा , तुम यहां किसके साथ आई हो ? तुम्हारे घर वाले कहां हैं ?
मैं अकेली हूं। पापा हमारे साथ नहीं रहते। मेरी मां यहां जे. जे. अस्पताल में दाखिल थी। उसे करोना हो गया था। ये लोग एंबुलेंस में मेरी मां को आज सवेरे यहां लाये हैं। मैंने खुद देखा हैं । अब कह रहें हैं कि तुम्हारी मां हमारे पास नहीं है। हम उसे यहां लेकर नहीं आये। जाओ अस्पताल में पता करो। मेरे साथ मेरे मामू आये थे। लेकिन , मुझे यहां छोड़कर न जाने कहां चले गये। मुझे मेरी मां के पास जाना है। वह फिर रोने लगी। हमें हमारी मां की शक्ल दिखाओ न।
वह लगातार रोए जा रही थी। उसने सिसकते हुए कहा - अच्छा अंकल , इनसे कहकर मेरी मां की एक फोटो ही ला दीजिये।
बेटा , तुम उसका क्या करोगे ? मैंने हैरानी से पूछा।
उसने आंसू पोंछते हुए बड़ी मासूमियत से जवाब दिया - हम उसे फेसबुक पर डालेंगे। भगवान से प्रार्थना करेंगे कि हे भगवान हम अपनी मां के बगैर अकेले नहीं रह सकते। हम भूखे हैं। हमें अब खाना कौन खिलायेगा। लोरी कौन सुनायेगा। हमारी मां के सिवाय , हमारा इस दुनिया में कोई नहीं है। भगवान , हमारी मां को जल्दी वापिस भेज दो। हमारी मां को जल्दी वापिस भेज दो। मैं , बेबस , असहाय सा उसकी आंखों से बहते आंसुओं के सैलाब में उसके भविष्य को डूबते हुये देखता रहा।