शायद
शायद
दो चोटियों में बंधे लाल रिबन, बालों में ढेर सारा सरसों का तेल ! पहली लाइन की दूसरी सीट एकदम तय जगह बैठने की ! शर्मीली सी, मगर पढ़ाई में तेज ! "सारिका मैडम "की सबसे पसंदीदा छात्रा !" सारिका मैडम "क्लास में आते ही बोलती " नीलू आगे बैठा करो बेटा, तुम्हारी जगह सबसे आगे है !" नीलू बस मुस्कराती रहती ! सारिका मैडम आंखों ही आंखों में उसकी तारीफ करती रहती। थी भी तारीफ के काबिल, बस मिश्रा सर को नीलू कभी पसंद नहीं आती ! मिश्रा सर स्पोर्ट्स टीचर, लंबे/ चौड़े कड़क आवाज, उम्र के साथ कंधे हलके से झुक गए थे । " कभी खेल भी किया करो देवी नीलिमा, तुम्हारा दिमाग कुंद हो जाएगा ! दस तरह की बीमारियां पकड़ लेंगी।" नीलू मानो मिश्रा सर की बात सुनती ही नहीं थी, उसको खेल/ कूद में एक पैसे की भी रुचि नहीं थी। चुपचाप रहना और पढ़ाई करना यही दो शौक थे उसके ! सीमा उस की एकमात्र दोस्त, सीमा लंबे कद की खुरदरी सी लड़की। सीमा खेलकूद में लड़कों को भी मात करती थी, पढ़ने में भी ठीक थी ! सीमा और नीलू की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी ! सीमा की वजह से किसी लड़के/ लड़की की हिम्मत नहीं थी कि नीलिमा को कुछ कह दे ।
लंच के टाइम दोनों मिल बांटकर टिफिन खाती ! नीलू मुझे शुरू से बहुत अच्छी लगती थी, चोरी/ चोरी उसको देखना मेरा रोज का काम था। मिश्रा सर का डर और उससे भी ज्यादा सीमा का डर मुझे खुल कर अपनी बात कहने से रोक देता। फिर भी गाहे/ बगाहे मैं नीलू से बात करने के मौके ढूंढ़ लेता था। उसकी चुप्पी, बोलती आँखें , चांद सा भोला/ बेदाग चेहरा और मीठी आवाज ।मैं दीवाना था उसका, शायद उसको भी पता था या शायद वो कभी जान ही नहीं पायी । कभी/ कभार उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक दिखती, मुझे देखते ही। पर हर बार ऐसा नहीं होता। मैं कभी नहीं समझ पाया कि क्या वो मुझे पसंद करती है या फिर मैं भी उसका केवल एक सहपाठी था दूसरे बच्चों की तरह। पढ़ाई में वो मेरी मदद पूरी तल्लीनता से करती थी। मैं जान बूझकर उसके पास कुछ न कुछ पूछने पहुँच जाता, वो हर बार मेरी मदद करती। क्या यह उसकी चाहत थी मेरे लिए या वो सभी की मदद करती थी? याद करता हूँ तो शायद वो भी मुझे चाहती थी? सीमा ने एक बार मुझे बहुत जोर से डाँटा था, " आजकल तू नीलू से बहुत पढ़ रहा है? क्या इरादा है? कभी मुझसे भी पढ़ लिया कर ।देख कुछ उल्टा/ सीधा न सोचना उस के बारे में, नहीं तो समझ लेना। पढ़ाई तक ही रहना मजनूं।
मेरे मन मे ऐसा कुछ नहीं है सीमा, तू गलत सोच रही है। मैंने भारी दिल से कहा था।
" सुन ! नहीं है तो बहुत अच्छा, आगे भी कभी ऐसी बात मन में न लाना। तेरी सलामती इसी में है !
पागल है तू सीमा, ऐसा कुछ नहीं है! सीमा से तो कह दिया, पर उसके बाद नीलू से बात करने की हिम्मत नहीं हुई।
दूर/दूर से देख लेता उसको, मुस्कराते हुए, लिखते हुए, चुपचाप बैठे हुए, सीमा से बातें करते हुए। दिनोदिन उस से बात न करने का गम बढ़ता जा रहा था।पर बात करने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
किस से कहूँ, कैसे कहूँ कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। किसी तरह से पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश कर रहा था। पर मन बार/ बार नीलू के पास पहुँच जाता !
" बादाम खाने लगे क्या? दिमाग तेज हो गया है, कुछ भी नहीं पूछते आजकल ! सब समझ लेते हो , एक प्रॉब्लम मेरी भी बता दो गणित की !" नीलू मुस्करा रही थी, वही प्यारी मुस्कुराहट। मैं सम्मोहित सा उसे देखे जा रहा था, इतने दिनों बाद उस को इतना क़रीब पाकर मन में एक गुदगुदी सी हो रही थी ।तो क्या वो भी मुझे चाहती थी ? शायद नहीं ? शायद हाँ ? हाँ वो भी चाहती थी एक ख़ामोश सा अनकहा दो तरफ़ा प्यार। शायद?? काश यही सच हो ।