वो माया चाची नहीं
वो माया चाची नहीं
पड़ोस में रहने वाली माया चाची ने डुगडुग को सुनहरे बालों वाली एक सुंदर सी गुड़िया भेंट दी ...। वह बहुत खुश थी अपनी प्यारी सी तुतलाती बोली से बोली," थैंक्यू .. आंटी ।" ,उसके बाल बनाती , कभी रिब्बन लगाती ,कभी उसके कपड़े बदलती ,कभी सुलाती ,कभी उससे बातें करती ...।गुड़िया के ख्यालों में खो जाती ..। माया चाची और उसका आंगन बिल्कुल सटा हुआ था ..।
माया चाची बच्चों से बहुत प्यार करती थी ..। परंतु ,उनके कोई बच्चे नहीं थे..।वह डुगडुग से बहुत दुलार करती थीं...।चाची के मन की पीड़ा कभी उभर आती थी ,तब डुगडुग को अपनी बाहों में भर पुचकारती ..।डुगडुग की मां घर में यदि काम पर लगी रहती तो डुगडुग चुपचाप जाकर जाकर माया चाची को डरा देती," हा...ओ .. ओ ..!" आवाज निकालती ..चाची चौंक जाती थी । उसके साथ समय गुजारना माया चाची को अच्छा लगता ..।
एक बार चाची आंगन से डुगडुग को निहार रही थीं ..वह अपनी सुनहरे बालों वाली गुड़िया से खेल रही थीं ..अपनी गुड़िया से बोल रही थी," तुम्हारा नाम क्या है दोस्त ? कहां से आई हो ? किसने तुम्हें बनाया ?"फिर गुड़िया के मुंह में अपने कान रखती और कहती,"अच्छा तो तुम्हाला नाम ममू है ना ..! ?? तुम तो गुड़ियों के देश छे आई हो.. ..। जैसे मुझे मां लाई , तुम्हें दुकान छे माया चाची लाई हैं । "माया चाची डुगडुग की तोतली बातों से मंद- मंद मुस्कुरा के रह जाती थीं ...।
अक्सर चाचा टूर पर बाहर रहते थे .. ।औलाद के लिए उन्होंने क्या नहीं किया ..वह सब कुछ जो एक परिवार कर सकता था ..।पाठ,अंत्र- मंत्र सभी कुछ ,परंतु कुछ लाभ नहीं हुआ ...।
एक बार:तांत्रिकी विधि से विशेष पूजा का आव्हान हो रहा था और चाची के घर से तहखाने से अजीब -अजीब आवाजें बाहर आ रही थीं...।लग रहा था जैसे कोई उन्हें जोर- जोर से मार रहा था और चाची की की चींखें आ रही थीं...। वह बुरी तरह डर गई थी ..।कभी ,पंडितों को यज्ञ और पूजा दान करते देखा ...। वह सब कुछ करके हार गए थे , नियती को कौन टाल सकता था ..।
एक बार...चाचा अपने संग एक ख़ूबसूरत गोरी स्त्री को ले आए थे और चाची के साथ बुरी तरह झगड़ा हुआ था..।चाची रोते हुए जोर- जोर से चिल्ला रही थी ..
"तुम ऐसे कैसे कर सकते हो आशीष ..? तुम्हारे लिए अब मेरी कोई कीमत नहीं क्या ..? मैं बच्चे की मां नहीं बन सकती पर, तुम्हारे घर की बहू तो हूं.. यहां मेरा अपमान बहुत हो चुका है । मैं वृंदावन जाकर स्वयं को श्री चरणों में अर्पित कर दूंगी ..। धिक्कार है तूमपर कितने बदल गए हो तुम ..! ओह..!"
चाचा बोल रहे थे,"-- जाओ .. जाओ ..तुम्हारी जरूरत नहीं माया ..तुम एक बांझ हो ,तुम मां नहीं बन सकती ..तुम बाद तक बोझ ही रहोगी ।"
चाची बहुत दुखी थी,अगले दिन चाचा जा चुके थे ....। वह अपने मायके नहीं जा सकती थी क्योंकि,उनके मां -पिता नहीं थे ..।
एक दिन :माया चाची उसके पास आई और बोली," डुगडुग क्या तुम मेरे साथ चलोगी ? "
डुगडुग ने हां सर हिलाया तब, माया चाची उसका हाथ पकड़कर घर ले गई । उसकी पसंद का खाना बनाया और एक लाल रंग का सुंदर फ्राक भी दिया ..क्योंकि, लाल रंग डुगडुग को बहुत भाता था ..।उससे प्यार से बोली ,"--जैसी तुम्हारी गुड़िया है ना तुम्हारे लिए प्यारी , तुम भी मेरे लिए वैसी ही प्यारी गुड़िया हो डुगडुग.. ।"फिर,माया चाची उसको एक अजीब सी कोठरी में ले गई जहाँ अजीब सा सन्नाटा पसरा था ..।वहाँ बहुत से बच्चों की तस्वीरें लगी थीं ..।
बोलीं,"--देखो बेटा कितने प्यारे गुड्डे - गुड़िया से बच्चे हैं । तुम जानती हो ये सब मेरे हैं..और अब ये इस दुनियां में नहीं हैं .. हा हा हा हा..! वे जोर -जोर से हंस रहीं थीं ।चाची का ऐसा रुप उसने कभी नहीं देखा था ..जोर से हाथ को धक्का दिया और घर की और चीखते हुए दौड़ी व घर जाकर मां से लिपट गई ..।
.."मम्मी बचाओ मुझे.. म्म्मी बहुत डर लग रहा है ..।"
मां ने उसको अपने से चिपका लिया बोली ," क्या हुआ .. डुगडुग तुम क्यों कांप रही हो ..?"
वह डरते हुए बोली " मम्मी..वो ना ..माया चाची मुझे अंदर ले गई थीं और अजीब सी जगह , बच्चों की बहुत सारी फोटो टंगी थीं । डर लग रहा था ।" वह बोल फिर मम्मी के आगोश में जाकर दुबक गई ..।मां सारी बातें समझ गई थीं उन्होंने पिता से सभी बातें कह दीं ..।अगले ही दिन मां के कहने पर पिता ने आंगन की ओर का झरोखा बंद करवा दिया..।फिर चाची उस ओर से कभी दिख ना पाई..।
आज इतने सालों बाद जब वह अठारह साल की हुई , तो पता चला , माया चाची घर से बहुत पहले ही गायब हो चुकी है । कहां कुछ पता नहीं चल पाया ..।जब एक रिश्ता बदलता है तो कई रिश्ते बदल जाते हैं , जैसे माया चाची और डुगडुग का ...चाचा और चाची का , डुगडुग के पूरे परिवार का ...चाची के संग का प्यारा रिश्ता इतना भयावह हो जाएगा ये मालूम ना था ..।चाची अब एक याद बनकर है ,वो भी एक दिन वक्त के थपेड़ों में धूमिल पड़ जाएगी ..। आज नहीं तो कल ..।
वह लाल फ्राक डुगडुग घर नहीं ला पाई थी, उसमें माया चाची का प्रेम नहीं क्षुब्धता की झलक मिल रही थी ,जो उन्हें समाज के तिरष्कार से प्राप्त हुआ था ..।