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Sunanda Aswal

Classics Inspirational

4  

Sunanda Aswal

Classics Inspirational

स्नेह की डोर

स्नेह की डोर

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सांझ को बादल उमड़ -घुमड़ रहे थे, भानु अपने भाई की बाट जोह रही थी।

दूर से उसे पहाड़ी चिड़ी का मधुर।स्वर सुनाई दे रहा था, जो उसे उसके भाई की याद दिला रहे थे। इस बार उसका भाई सियाचिन ग्लेशियर के पास ड्यूटी में तैनात था और उसे छुट्टियां नहीं मिल रहीं थीं।

भाई ने उससे पिछली चिठ्ठी में यही कहा था, मेरा बेटा मेरी बहन भानु जब मैंने सम्पूर्ण भारत के रक्षा का प्रण किया है तो कैसे आ सकता हूं? देख, बहन किसी भाई की कलाई सूनी न हो, किसी मां की गोद न उजड़े न और किसी पत्नी की मांग का सिंदूर न छिने।

उसके लिए मैं अपने कर्तव्यों को भूल कैसे सकता हूं ? तुम्हारी राखी में पूरे भारत की बहनों के प्रेम की झलक देखता हूं। उन बहनों और भाइयों का जीवन सुरक्षित रहे तभी, हम सबकी राखी सुरक्षित रह पाएगी।

इस बार तो भाई को आना ही था, वह कितनी बार उस राह से आ आकर लौटी थी। तभी उसने देखा,उसके भाई जैसी वर्दी में कोई नीचे से आ रहा है। वह अजनबी व्यक्ति गांव का तो नहीं था पर, कोई भाई के दफ्तर वाला ही लगता था।

उसे देखकर वह बोला,"क्या यहां पर मदन जी का घर है ?"

उसके लिए यह बात कुछ असहज हो रही थी, उसने पूछना चाहा, पर चुप रही उसने गर्दन से हां का इशारा किया,भागकर उसके आगे- आगे साथ हो ली, वह कुछ कह नहीं पा रही थी।

वह अप्रत्याशित खतरे से डर रही थी। परंतु, ईश्वर पर उसे पूरा विश्वास था कि, जो भी होगा अच्छा ही होगा ‌।

वह व्यक्ति घर आया और उसके पिता को एक चिट्ठी दी और एक बड़ा सा पैकेट पकड़ाकर चला गया।

वह बस इतना ही सुन पाई थी जब उसने कहा था, "जल्द ही सब ठीक-ठाक हो जाएगा।"

वह व्यक्ति तुरंत चला गया। उसने उस पत्र को पढ़ा जो व्यक्ति देकर गया था, पढ़ा और उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

बहन,

मैं तुम्हें बताना चाहता था, एक युद्ध में मेरी वो कलाई कट चुकी थी, जिसमें तुम अपने स्नेह का धागा बांधती थी। मैं बहुत घायल था, घर न आने के लिए इस बार भी क्षमा चाहता हूं। माता पिता को भी मेरा प्यार कहना।

और हां। तुम्हारे लिए एक प्यारी सा लहंगा कब से लेकर रखा था कि जाऊंगा और रक्षा बंधन में दूंगा, पर तुम्हारा अभागा भाई न आ पाया। पर किसी तरह से तुम्हें रक्षाबंधन का उपहार पहुंचाना चाहता था। तुम्हारी प्रार्थना से ही मैं आज जिंदा हूं। मुझे पता है मेरी बहन मुझसे केवल स्नेह चाहती है, फिर भी मेरी भेंट मेरे प्यार का प्रतीक है।उसे स्वीकार कर लेना।

तुम्हारा भाई मदन।

उस राखी में भी भाई न आ सका, परंतु उसका कीमती से भी बेशकीमती तोहफा उसे मिल गया था, जो उसके लिए किसी भी दुनिया के क़ीमती पत्थर से भी अनोखा था। भाई बहन का अनोखा बंधन, रक्षाबंधन उसके लिए जीवन से भी प्यारा था, उसे वह कभी नहीं भूल सकती थी।


रात में टूटते तारे को देखते ही, उसने आंख बंदकर अपनी इच्छा जताई। तारा मुस्करा दिया उसने उसके भाई तक संदेश पहुंचा दिया। भाई बहुत खुश था, उसने अपना वह हाथ भले ही खो दिया था, पर बहन का प्रेम उसके जीवन भर की खुशियों के लिए काफी था।

वह भी स्नेह की डोर तब से हर वर्ष अपने क‌ई फौजी भाईयों को बांधती चली आई थी। यही उसका अपने भाई के लिए समर्पित प्रेम था,जिसने उसे भारत के फौजी भाईयों को प्रेरित किया।

धन्यवाद।


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