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Sunanda Aswal

Abstract Fantasy

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Sunanda Aswal

Abstract Fantasy

अजनबी शहर ( ग़ज़ल)

अजनबी शहर ( ग़ज़ल)

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रात को विरानी में सोया ,अजनबी शहर ,

सुबह की भाग दौड़ से बेचैन रहा पूरा शहर ..!

जाग कर थका हुआ ये सफर ,

सुबह मालूम नहीं कौन कहां है, किधर..!

अजनबियों से घिरा भीड़ भरा ये शहर,

कल तक न रहेगी किसी की खबर ..!

दो गज पर रहते हैं छज्जे फासले मगर,

जानता कौन है किसको अंजान नजर ..!

बातें खामोश इशारे से करता अजनबी शहर ,

भला कौन जानता है न पता और न घर ..!

कभी ,सुनाई देती है दास्तां, हादसों में जिक्र,

कभी पहचानी सी लगती है मशहूर कोई कब्र ..!



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